Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra धातु. हस् धातु - से हंसने अर्थ में ( २२ ) जुड़ने से जो संज्ञा, विशेषण प्रादि रूप बनते हैं, उन्हें ही कृदन्त कहा गया है । प्राकृत व्याकरण के नियमानुसार इन कृदन्तों का निम्न प्रकार वर्गीकरण किया गया है। (१) वर्तमानकालिक कृदन्त : -- इस कृदन्त में किसी कार्य के लगातार होते रहने की सूचना मिलती है। जैसे :हसतो = हँसता हुआ, चलंतो = चलता हुआ । इस अर्थ में धातु के साथ (i) न्त (शर्तृ) (ii) माण ( शानच् ), एवं (iii) ई प्रत्यय जोड़ जाते हैं । प्रथम दो प्रत्यय पुलिंग एवं नपुंसक लिंग में तथा तीसरा प्रत्यय स्त्रीलिंग का सूचक होता है । इसमें 'ई' के स्थान में कहीं कहीं 'न्ती' एवं 'माणि' का प्रयोग भी पाया जाता है । न्त, माण एवं ई प्रत्यय के पूर्व में आने वाले 'अ' स्वर के स्थान में विकल्प से 'ए' हो जाता है । संस्कृत व्याकरण के नियमानुसार परस्मैपदी धातूमों में शट प्रत्यय एवं प्रात्मनेपदी धातुओं तथा कर्मणि प्रयोग में शानच ( यान अथवा मान ) प्रप्ययों का विधान है । लेकिन प्राकृत व्यापार में वह नियम लागू नहीं होता । इसके उदाहरणार्थ कुछ कृदन्त रूप यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं : --- प्रत्यय (न्त) (शत) (माण ( शानच् ) www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुल्लिंग हसंतो, हतो नपुंसकलिंग हसंतं, हसेंतं, हसमाणोः हसमाणं हसेमाणो हमा For Private and Personal Use Only स्त्रीलिंग - (ई) हसंती, हसंती (ई) हसमाणी, (ई) हसमाणी, -

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