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धातु.
हस् धातु -
से हंसने
अर्थ में
( २२ )
जुड़ने से जो संज्ञा, विशेषण प्रादि रूप बनते हैं, उन्हें ही कृदन्त कहा गया है । प्राकृत व्याकरण के नियमानुसार इन कृदन्तों का निम्न प्रकार वर्गीकरण किया गया है। (१) वर्तमानकालिक कृदन्त : -- इस कृदन्त में किसी कार्य के लगातार होते रहने की सूचना मिलती है। जैसे :हसतो = हँसता हुआ, चलंतो = चलता हुआ । इस अर्थ में धातु के साथ (i) न्त (शर्तृ) (ii) माण ( शानच् ), एवं (iii) ई प्रत्यय जोड़ जाते हैं । प्रथम दो प्रत्यय पुलिंग एवं नपुंसक लिंग में तथा तीसरा प्रत्यय स्त्रीलिंग का सूचक होता है । इसमें 'ई' के स्थान में कहीं कहीं 'न्ती' एवं 'माणि' का प्रयोग भी पाया जाता है ।
न्त, माण एवं ई प्रत्यय के पूर्व में आने वाले 'अ' स्वर के स्थान में विकल्प से 'ए' हो जाता है । संस्कृत व्याकरण के नियमानुसार परस्मैपदी धातूमों में शट प्रत्यय एवं प्रात्मनेपदी धातुओं तथा कर्मणि प्रयोग में शानच ( यान अथवा मान ) प्रप्ययों का विधान है । लेकिन प्राकृत व्यापार में वह नियम लागू नहीं होता । इसके उदाहरणार्थ कुछ कृदन्त रूप यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं :
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प्रत्यय
(न्त)
(शत)
(माण
( शानच् )
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पुल्लिंग
हसंतो,
हतो
नपुंसकलिंग
हसंतं,
हसेंतं,
हसमाणोः हसमाणं
हसेमाणो
हमा
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स्त्रीलिंग -
(ई) हसंती, हसंती (ई) हसमाणी, (ई) हसमाणी,
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