Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाँचवाँ पाठ तद्धित-प्रत्यय-प्रकरण अर्थ-विशेष को प्रकट करने के लिए जिन प्रत्ययों को संज्ञा आदि शब्दों में जोड़ा जाता है, उन्हें तद्धित-प्रत्यय कहते हैं। ये तद्धित-प्रत्यय सामान्यतया १० प्रकार के माने गए हैं, जो निम्न प्रकार हैं :१. अपत्यार्थक :- अपत्य (सन्तान-पुत्र-पुत्री) अर्थ के प्रसंग में अ, ई, प्रायण, एय, ईण आदि प्रत्यय जोड़े जाते है। किसी वंश अथवा गोत्र में उत्पन्न पौत्र आदि के लिए भी इन प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है। जैसे :अ-वसुदेव - अ-वसुदेवस्स ' अपत्त =वासुदेवो ( वसुदेव का पुत्र) ई-दशरह +ई-दस रहस्स अपत्त =दास रही ( दशरथ का पुत्र) प्रायण-नड-+-पायण-नडस्स अपत्तं =नाडायणो ( नट का पुत्र) एय-कुलडा। एय-कुलडाए अपत्त कोलडेया ( कुलटा का पुत्र) ईण-महाउल -- इण---महाउलस्स अपत्त = महाउलीणो(महाकुल का पुत्र) For Private and Personal Use Only

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