Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २७ ) करणों ने निम्न नियम निर्धारित किए हैं :(क) 'आय' एवं 'आए' को छोड़कर सम्बन्ध सूचक भूत कृदन्त के प्रत्ययों के पूर्व में आने वाले 'अ' को 'इ' अथवा 'ए' आदेश होते हैं। जैसे :- हस्+अ+तु=हसिउ, हसेउ हस् +अ+अ =हसिन, हसे. (ख) तूण, तुआण और इत्ताण प्रत्ययों के 'ण' पर विकल्प से अनुसार होता है। जैसे :हस+तूण=हसिऊणं, हसिऊण, हसेऊणं, हसेऊण.. हस + तुआण=हसिउपाणं, हसिउआण. हस ---इत्ता हसित्ता, हसेत्ता.. हस + इत्ताण= हसित्ताणं, हसित्ताण, हसेत्ताणं, हसेत्ताण. इसी प्रकार अन्य धातुओं-जैसे हो (होउ, होऊणं होऊण) तथा भण, नम, दा, कर, पढ़, ठा, अादि के भी इसी प्रकार के रूप बनते हैं। (ग) ध्वनियों में परिवर्तन हो जाने से भी शब्द रूप बन जाते हैं। जैसे : वन्दित्वा-वंदित्ता.। गत्वा-गच्चा, गत्ता. ज्ञात्वा-णच्चा । सुप्त्वा-सुत्ता. (घ) प्रेरणार्थक सम्बन्ध सुचक रूप बनाने के लिए प्रेरणार्थक प्रत्यय जोड़ने के बाद तु, तूण आदि प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे : For Private and Personal Use Only

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