Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४) समस्त एवं स्तम्भ शब्दों को छोड़कर अन्य शब्दों के 'स्त के स्थान में 'त्थ अथवा 'च्छ हो जाता है। जैसे प्रशस्तः =पसत्थो। प्रस्तरः-पत्थरो (पत्थर) मत्सरः = मच्छरो। वत्सः=वच्छो हस्तः = हत्थो। स्तोत्रम् =थोत्तं । (५) 'प', 'स्प' के स्थान में 'फ' अथवा 'फ' हो जाता हैं। जैसे : पुष्पम् = पुप्फ । स्पर्शः = फंसो। स्पंदनं = फंदणं (६) 'थ्य' के स्थान में ‘च्छ हो जाता है । जैसे : पथ्यम् = पच्छ । मिथ्या=मिच्छा। ... (७) 'ज्ञ' के स्थान में 'ण' अथवा ण हो जाता है। जैसे- . प्रज्ञा=पण्णा । सर्वज्ञः = सव्वण्णू संज्ञा =सण्णा । आज्ञा=आणा। ज्ञानम् =णाणं । विज्ञानम् = “विण्णाणं । .. (८) 'ध्य' के स्थान में 'झ'। यथा ध्यानम् = झाणं। उपाध्यायः उवज्झायो. मध्यम् =मज्झं । विन्ध्यः=विज्झो. (6) 'म्न' के स्थान में 'पण' । यथा-.. प्रद्य म्नः=पज्जुण्णो । निम्नम् =निण्णं. (१०) 'क्ष' के स्थान में 'ख', क्ख 'छ' एवं 'झ' होते हैं। जैसे : क्षयः खयो। लक्षणम् =लक्खणं . क्षमा=खमा। क्षीणम् = खीणं, झीणं क्षुधा-छुहा, खुहा. For Private and Personal Use Only

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