Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . आ+ईए-जाया + ईसो जायेसो, जायाईसो (जायेशः) अ - उ=ो गूढ + उग्ररंगूढोअरं, गूढ उअरं (गूढोदरम्) आ+उप्रो -रमा + उवचिअं= रमोवचिग्रं, रमा-उवचिग्रं अ+ऊ=ो-सास+ऊसासा =सासोसासा, सास-उसासा (श्वासोच्छ्वासा) या+ऊ=ो-विज्जुला-+ ऊसु भिअं= विज्जुलोसुभिनं, विज्जुला-ऊसु भिअं इसी प्रकार :अ+एए ण+एव=णएव ( नैव ) आ+ए=ए तहा--एव तहेव ( तथैव ) अ+ो=ो जल ---अोहो=जलोहो ( जलौघः) आ+ओ=ो पहा+ोलि=पहोलि (प्रभावली: ) ह्रस्व-दीर्घ स्वर-सन्धि :प्राकृत-व्याकरण के नियमानुसार प्राकृत के सामासिक पदों में विकल्प से ह्रस्व-स्वरों का दीर्घ एवं दीर्घ स्वरों का ह्रस्व हो जाता है। जैसे :(क) ह्रस्व-स्वर का दीर्घ-अंत+वेई=अंतावेई, अंतवेई. सत्त+वीसा=सत्तावीसा; सत्तवीसा.. पइ+हरंपईहरं; पइहरं. (स) दीर्घ-स्वर का ह्रस्व-मणा+सिलामणसिला; मणासिला. For Private and Personal Use Only

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