________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ई-ई पुहवी+ ईसो पुहवीसो, पुहवी ईसो .
(पृथिवीशः) उ+उऊ-भाणु+उवज्झानो= भाणूवज्झाओ, भाणु उवज्झायो(भानूपाध्यायः) उ+ऊ=ऊ-साहु +ऊसवो साहूसवो
(साधूत्सवः) साहु ऊसवो ऊ+3=ऊ-बहू + उअरंवहूअरं, वहू उपर
(वधूदरं) ऊ+ऊ=उ-कणेरू +ऊसिग्रंकणेरूसिय,
कणेरू ऊसिध (ii) गुण-स्वर-सन्धि :
इस सन्धि को असवर्ण स्वर-सन्धि भी कहते हैं। इसमें अ और प्रा के बाद प्रसवर्ण ह्रस्व अथवा दीर्घ ई और ऊ हो, तो दोनों के स्थान में क्रमशः ए और प्रो गुणादेश हो जाता है। यह नियम वैकल्पिक है अर्थात् कहीं गुणादेश होता है और कहीं-कहीं नहीं भी
होता है। जैसे :(क) अ+इ=ए-वास + इसीवासेसी, वासइसी
। (व्यासऋषि) प्रा+इ=ए-रामा + इयरो= रामेअरो, रामा इअरो
(रामेतरः) +ई-ए-दिण+ईसो दिणेसो, दिण ईसो
(दिनेशः)
For Private and Personal Use Only