Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir च-सहचरः = सहय रो, सहअरो। " वाचणा=वायणा, वारणा , वचनं = वयणं, वअणं ज-पूजा =पूया, पूमा। ... ,, भुजा = भुया, भुना। राजा-रायो, राम्रो। त-पिता=पिया, पिया। माता-माया, माया द-भेदः=भेयो, भयो। कदम्बः = कयंबो, कबो मदनः-मयणो, मप्रणो प-रिपुः =रिऊ। विपुलम्-विऊलं, य-प्रयोजनम् = पयोयणं, पोअणं । वायु-वाऊ, व-प्रावृषः = पाउसो (वर्षाऋतु)। दिवसः =दियहों ,दिअहो अपवादयहाँ 'प्राय': शब्द वैकल्पिक हैं अर्थात् कहीं-कहीं लोप नहीं होता। जैसे : सुकुसुमं =सुकुसुमं; पियगमणं =पियगमणं; सचावं = सचावं, विजणं = विजणं, अतुलं = अतुलं, आदरो= आदरो आदि । इसी प्रकार संग मो, अक्को, कालो, आदि में भी उक्त नियम लागू नहीं होता। (२) मा एवं उ स्वरों के बाद आने वाले 'प, का 'व' हो जाता है। जैसे पापं = पावं। उपाय: = उवायो। उपहासः = उवहासो। For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94