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विषय ३२५ ...वृद्धव्यवहार से वाच्य-वाचक अवधारण | ३३८ ...एकान्त अर्थान्तररूपता से स्वरूप से व्यावृत्ति ३२५ ...प्रतिनियत योग्यता के लिये स्वाभाविक | की आपत्ति सम्बन्ध निरुपयोगी
| ३३९ ...निक्षेपों से प्रयुक्त आद्य तीन भंग-२ ३२६ ...शाब्दं प्रमाणमनुमानभिन्नमिति प्रस्थापनम् |३३९ ...नामादि घट के आकार से प्रयुक्त ३२७ ....रूप्य के अभाव में अनुमानरूपता अस्वीकार्य | भंगत्रय-३ ३२७...अनुमानरूपता की सिद्धि के व्यर्थ प्रयास | ३४० ...मध्य-पूर्वोत्तरावस्थाभेद से तीन भंग - ४ ३२८...मीमांसकमतोक्तं वर्णानां वाचकत्वमसंगतम् | ३४१ ...इन्द्रियग्राह्यत्व-अग्राह्यत्व से तीन भंग - ६ ३२८...शाब्दप्रमाण स्वभावलिंगक अनुमान नहीं |३४१ ...घटकुटशब्दवाच्यत्वावाच्यत्व प्रयुक्त तीन ३२८ ...मीमांसक मत में वर्गों में अप्रामाण्य की भंग - ७ आपत्ति
| ३४२ ...उपादेयादि-हेयादि रूप प्रयुक्त तीन भंग - ८ ३२९ ...जैनदर्शनानुसार वर्णों की शब्दरूपता संगत | ३४२ ...इष्टार्थबोधकत्व-अबोधकत्वरूप से तीन ३३० ...क्रम और वर्णों के भेदाभेद से सर्वसंगति भंग - ९ ३३१ ...व्यञ्जन पर्यायरूप शब्द वाच्य अर्थ का | ३४३ ...घटत्व एवं सत्त्वासत्त्व स्व-पररूपों से पर्याय
भंगत्रय - १० ३३२ ... गाथा-३३ का विवरण
३४४ ...व्यञ्जनपर्याय-अर्थपर्याय से ३३२ ...पुरुष की एकानेकरूपता न मानने पर | पर-स्वरूप से भंगत्रय - ११ अनिष्टापत्ति
३४४ ...दो अवाच्यों से स्व-पर-रूप से ३३३...गाथा-३४ का विवरण
भङ्गत्रय - १२ ३३४ ...गाथा-३५ का विवरण
| ३४५ ...संदूपता और सत्त्वादि से भंगत्रय - १३ ३३४ ...सविकल्प-निर्विकल्प उभयरूप से वस्तुप्रतिपादन | ३४५ ...रूपादि और असद्रूपत्व से भंगत्रयसत्य
निष्पत्ति - १४ ३३५ ...गाथापञ्चकेन सप्तभंगीस्वरूपनिरूपणार्थ- | ३४६ ...रूपादि और मतुप् अर्थ से भंगत्रय मारम्भः
प्राप्ति - १५ ३३६ ...गाथा-३६ का विवरण
३४६ ...बाह्य-अभ्यन्तर रूपों से भंगत्रय ३३६ ...भङ्गत्रयसमर्थकाः षोडशापेक्षाभेदाः
निष्पत्ति - १६ ३३६ ...सप्तभंगी के प्रथम तीन भंगो का | ३४७ ...सप्त भंगों में सकलादेश-विकलादेश विभाग स्पष्टीकरण-१
३४७ ...सकलादेश-विकलादेश भंगो का वाक्यार्थ ३३७ ...बहुव्रीहि-द्वन्द्व-अव्ययीभाव समास की | ३४८ ...विकलादेश के उत्तर चार भंगों का स्वरूप निष्फलता
३४८ ...नय-दुर्नय-सुनय-प्रमाण का विभाग एवं ३३७ ...तत्पुरुष-द्विगु-कर्मधारय समासों की निष्फलता
व्यवहारसम्पादन संकेतित एक पद से भी वाच्यता का | ३४९ ...क्रमशः उत्तरभंगचतुष्कनिरूपणे गाथाचतुष्कम् असंभव
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