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इस ग्रंथ में लेखक का कुछ भी अपना नहीं है। उसे जो उपरोक्त तीनों पुराणों से मिला, उसी के आधार पर इस संक्षिप्त जैन महाभारत को लेखक ने अपनी शैली में लिखकर प्रबुद्ध वर्ग के सामने रखने का एक लघु प्रयास किया है। फिर भी यदि प्रबुद्ध पाठकों को इस रचना में कुछ खामियां एवं अशुद्धियां दृष्टिगोचर हों, तो उनके विचार सादर आमंत्रित हैं, ताकि उसे अगले संस्करण में सुधारा जा सके।
___ अंत में लेखक आदरणीय श्री दशरथ जैन, पूर्व मंत्रीमध्यप्रदेश शासन एवं अपनी धर्मपत्नी श्रीमती राजकुमारी जैन के प्रति आभार व्यक्त करता है, जिन्होंने लेखन कार्य में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से हमें अपना सहयोग प्रदान किया है। अन्त में लेखक केलादेवी सुमतिप्रसाद ट्रस्ट दिल्ली के संस्थापक एवं अध्यक्ष अशोक सहजानन्द जी एवं व्यवस्थापक श्री मेघराज जी का हार्दिक आभार व्यक्त करना अपना पुनीत कर्तव्य समझता है, जिन्होंने बहुत सुन्दर रूप में पुस्तक का प्रकाशन किया है। जैन साहित्य के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में ट्रस्ट का कार्य निश्चय ही अभिनंदनीय है।
- प्रो. प्रकाश चंद्र जैन नूतन विहार कॉलोनी टीकमगढ़ (म.प्र.)
संक्षिप्त जैन महाभारत.9