Book Title: Sanatan Jain Dharm
Author(s): Champat Rai Jain
Publisher: Champat Rai Jain

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Page 11
________________ (२) हेतुमें विशेष प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है । केवल निम्न लिखित विद्वानोंके वाक्य ही यह पूर्णतया दर्शा देंगे कि " वौद्ध धर्म जैन धर्मका निकासस्थान किसी प्रकार नहीं हो सक्ता । ु डा० टी० के० लड्डका कथन है कि "वर्द्धमान महावीर स्वामी से पूर्व जैन समयके इतिहास की कोई विश्वसनीय खोज हम नहीं कर सक्ते, परन्तु यह निश्चय है कि जैनधर्म बौद्धधर्म से पहलेका है और उसको महावीर स्वामी के पूर्व पार्श्वनाथ या किसी और तीर्थकरने स्थापित किया था, " महामहोपाध्याय डा० सतीशचन्द्र विद्याभूषणका + भी इस विषय में हृढ़ विश्वास है और वह लिखते हैं कि यह निश्चित समझा जा सक्ता है कि -F "इन्द्रभूति गौतम जो महावीर स्वामीके गणधर थे और जिन्होंने उनकी शिक्षाओंको एकत्रित किया था, वौद्धधर्म के प्रचारक गौतमबुद्ध, और ब्राह्मण न्यायसूत्रों के रचयिता . अक्षपाद गौतमके समकालीन थे ।" योरुपीय विद्वानोंकी ओर दृष्टि डालते हुये इन्साइक्लोपीडिया * देखो डाक्टर लड्डू साहवका सपूर्ण व्याख्यान अंग्रेजी भाषामें जिसको मंत्री स्याद्वाद महाविद्यालय काशीने प्रकाशित किया है । and + अंगरेजी जैनगजट भाग १० अंक १ देखो I

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