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जैसे पहिले हो. दो में कुछ थोड़ासा झलकता है । काल गौर आकाश जैसे बड़े मुख्य पदार्थोंको यह विचारमें नहीं लाती जब - कि साधारण वस्तुओं जैसे कर्म-इन्द्रियोंको इनमें अलग स्थान दिये गये हैं। इस बातका भी पता नही चलता कि उनका चुनाव किस आधार पर किया गया है क्योंकि इसी प्रकार के बहुतसे भावश्यकीय कार्य जैसे पाचन क्रिया, रुधिःका संचालन इत्यादि - बिल्कुल छोड दिये गये हैं। यह पूर्ण दर्शन धर्म, आवागमन और, मुकिकी वैज्ञानिक और पूर्णतया वृद्धि अनुसार व्याख्या समझी जाती है तो भी इस विषय में किसी बानके समझानेका प्रयत्न नहीं किया गया है; और आध्यात्मिक विद्याका यह सम्पूर्ण विभाग तत्वोंमे होने के कारण विलक्षण प्रतीत होता है । नैयायिक लोग मिस्न १६ तत्वों को मानते हैं ।
( ६ ) निर्णय (१०) वाद
(११) जल्प
( १२ ) वितण्डा
(१३) हेत्वाभास
(१४) छल
(१५) जाति
( १ ) प्रमाण
(२) प्रमेय
( ३ ) संशय
( ४ ) प्रशा
(५) द्रष्टान्त
( ६ ). सिद्धान्त
( ७ ) अवयव
(८) सर्क
(१६) निग्रहस्थान
- वहां भी एक दृष्टि इस बात के बोध के लिये यथेह है कि
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यह तत्व केवल न्यायका ज्ञान करा सकते हैं। परन्तु न्याय