Book Title: Sanatan Jain Dharm
Author(s): Champat Rai Jain
Publisher: Champat Rai Jain

View full book text
Previous | Next

Page 99
________________ ( ६ ), न लेने पर भी ) अलग अलग तयोंके तौर पर कायम किया जाना सन मानसिक फूहडपनकी मिसाल है । वैशेषिक लोग निम्न पदार्थोंका उल्लेख करते हैं (५) विशेष (६) समवाय ( ७ ) असाव " " सामान्य परन्तु यह भाग बन्दी तत्व-गणना नहीं है वल्कि अरस्तू और मिलके तरीकोंके सदृश एक प्रकारकी विभाग बन्दी है चुनांचे मेजर पी० डी० वालुके प्रकाश किये हुए कणाडके वैशेषिक सूत्रों की भूमिका के योग्य लेखकने इस बात को अपना सच्चा कर्तव्य समझा कि इस दर्शन के दोषोंके लिये पाठकले क्षमा मांगे । वह लिखता है : (१) द्रव्य (२) गुण कर्म ( ३ ) ( ४ ) 1 7 "वैशेषिक दर्शन पदार्थोंको एक विशेष और पूर्ण निश्चित दृष्टिसे देखता है । यह उन लोगोंकी विचार दृष्टि है जिनके · लिये कणाडके उपदेश बनाये गये थे। इस कारण वह एक ( उतना पूर्ण व स्वतन्त्र विचारोंका दर्शन नहीं है जितना कि वह वैदिक और अन्य प्राचान ऋषियोंकी जो कणाडके समय के पूर्व गुजरे हैं शिक्षाकी, उसकी उत्पत्तिके उपकरणों के लिहाज़ से वृद्धि या प्रयोग है । " वैशेषिकोंकी तत्वगणनाका आरम्भ वास्तव में और कर्मको भागबंदी से होना कहा जा सक्ता है । ✓ द्रव्य, गुण, द्रव्य नौ ह

Loading...

Page Navigation
1 ... 97 98 99 100 101 102