Book Title: Sanatan Jain Dharm
Author(s): Champat Rai Jain
Publisher: Champat Rai Jain

View full book text
Previous | Next

Page 89
________________ (८०) स्थानमें जिनको वह चाहती व मांगती है नकली और बुरी वस्तुः भेंट करके धोखा देते हैं; मोर मैकाडो बहिरात्मा (शारीरिक व्यक्ति) है जिसको छोड़कर वह चन्द्रलोक (पितृलोक )को वहाँके निवासियों के साथ प्रस्थान कर जाती है। - मगर द्रोपदीको इन्द्र से जो जावात्माका एक और अलंकार है पृथक् समझना चाहिये। इन दोनों रूपोंमें भेद यह है कि जब कि द्रोपदी जीवन सत्ता और ज्ञान इन्द्रियों के सम्बंधको जाहिर करती है, इन्द्रका भावक्षेत्र उसको अपेक्षा अधिक विशाल है। इन्द्रका जीवन यदि उसको एक ऐतिहासिक व्यक्ति या जीवित देवता माना जावे तो वह हिन्दुओके सदावार सभ्यता और देव तामोंके गुणों से घृणा उत्पन्न करने के लिये यथेष्ट है क्योंकि सिर्फ यही बात नहीं है कि उसने अपने गुरु गौतमको स्त्रोले भोग किया व पितामह ( ब्रह्माजी) ने भी उसे दण्ड देनेकी वजाया उसके पापके चिन्ह फोड़े फुन्सियोंको केवल उसकी प्रार्थना पर नेत्रों में परिवर्तन करके उसे और भी सुन्दर बना दिया, परन्तु इस कथाके यथार्थ अर्थका कोई संबंध इतिहाससे नही है और उससे प्रतीत होता है कि उसके रचयिताको आत्मज्ञानका बहुत कुछ बोध था, और अलंकारोंकी कवि-रचनाको अनुपात योग्यता प्राप्त थी । उस अलंकारिक भाषाका जो इस रूपके सम्बन्धमे व्यवहृत हुई है पूर्ण गतिसे रस लेने के लिये यह आवश्यक है कि हिन्दुओंके सृष्टि रचना सम्बंधी विचारोंको जो सांयमतानुसार पुरुष और प्रकृति के संयोगसे उत्पन्न होती है ध्यान में रखा जावे।

Loading...

Page Navigation
1 ... 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102