________________
(६) मिस्सन्देह भूमिकाकार हिन्दू सिद्धान्तके दोषोको, उसके शिष्योंकी अपक्व बुद्धि के आधार पर छिपानेका प्रयत्न करता है, परन्तु गुरुके पूर्ण ज्ञानको सिद्ध करनेवाले हेतुओंकी अनुपस्थितिमें. बह व्याख्या बुद्धि नहीं वरन विश्वास द्वारा प्रेरित की हुई ही मानी जा सक्ती है । इमको प्रतिपादनकी यथार्थता से कोई सम्बन्ध नहीं है, किन्तु मूल सिद्धान्तकी योग्यतासे है,. और उनके यथेष्ट न होनेके वाग्में तो साफ २ सवाल है।
'प्रमाण'के उपायों (जरायो) के विषयमे भी इन दीमि एकमत्ता नहीं है । वैशेपिकोंके मतानुसार प्रत्यक्ष और अनुमान (Observation and inference ) ही केवल माननीय प्रमाण है, नैयायिक लोग इन दोनोके अतिरिमत शब्द (आगम ) व उपमा को और बढ़ाते है, और मीमांसक लोग 'पर्धापत्ति' (Coro-- Ilary or inference by implication) और कभी २ 'अनु. उपलब्धि' (Inference by negation ) को भी शामिल करते है । परन्तु टपमान ( analogy ) वास्तवमें सिवाय एक प्रकार के 'अनुमानामाम' ( fallacy of inference ) के और कुछ नहीं है, और 'अर्थापत्ति' ( corollary) अनउपलन्धि सचे न्याय संगत अनुमानमें गर्मित है। शेषके तीन प्रांत प्रत्यक्ष ( direct observation ) 999ra (inferenc' ) SI TITA ( relrable testimony ) साधारणतया मत्यमानेके मुख्य उपाय हैं, बावजूद इसके निचशेषिक यागमको नहीं मानते हैं, क्योंकि विश्वसनीय शाती ही उन वस्तुओं के शान प्रालिका द्वार है जो