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इन्द्रकी बाबत कहा जाता है कि उसको सोम रसका भी चहुत शौक है जो मुसजमानो के मतको शराब तरासे सहता रखता है। यह एक प्रकारकी मदिरा है जो मगन करती है मगर मस्स नहीं करनी, और जो आत्मा के स्वाभाविक आनन्द का चिन्ह है।
इन्द्रका वाहन हाथी है जो विस्तार, और वजमवाला है, इसलिये पुद्गलका चिन्ह है। इस विचारका सार यह है कि आत्मा स्वयम् चज फिर नहीं सकती है परन्तु पुदुगलकी महायतासे चल फिर सकती है। इस विचारकी और भी व्याख्या स्वयम हाथो वन में पाई जाती है जिसके एक सिरसे तीन सूंड निकले हुये माने गये हैं और यह एक विलक्षण चिन्ह है जो अकारक भावको सिद्ध करने के लिये निम्सन्देह गढ़ा गया है क्योकि तीन सुपुद्गतके तीन गुणोके चात्रक है अर्थात् सत् रजन व तमस्के जो सांरूयमनके अनुसार प्रकृतिके तीन मुख्य गुण हैं । सोच और विस्तारको शक्ति जो जीवका मुख्य गुगा है इस्टीना करने पर बढ़ने और शत्री ( पवित्रता या पुण्य ) से पृथक होने पर अत्यन्त लघु रूप धारगा कर कमज ( महस्रार चक्र ) दण्ड ( अनुमानत: मेरु दण्ड ) के भीतर छिप जाने से दर्शायी गई है ।