________________
परन्तु मि० गुरुदत्त निरुकके कर्ता यस्कके मत पर जो हर शब्दको केवल उसके योगिक अर्थमें प्रयोग करता है, आरद है। हम योरुपीय अर्थकी यथेष्ट समालोचना कर चुके है और इसलिये अव मि० गुरुदत्तकी वृत्तिकी कुशलताका अन्दाजा उसको प्रोफेसर मैक्समूजरके अनुवादसे तुलना करके करगे। जिन वाक्योको हम तुलनात्मक निर्णयके लिये तजवीज करते हैं वह ही है जिसको मि० गुरुदत्तने स्वतः हो मुकाविलाके लिये पसन्द किया है और ये ऋग्वेदके १६२वें मुक्तके प्रथमके तीन मन्त्र है। मि० गुरुदत्त और प्रोफेसर मैक्समूलर दोनोके अर्थ 'टर्मिनालोजी औफ दि वेदज़ में दिये हुये है और निन्न प्रकार हैं। मि० गुरुदत्त
प्रो. मैक्समूलर २-"हम तेजस्वी गुणोंसे "पाशाहै कि मित्र, वरुण,
सुसज्जित फुर्तीले घोडेके आर्थमन, आयु, इन्द्र, ऋतुओं वल उत्पन्न करनेवाले के स्वामी और मारत हमको स्वभावोका वर्णन न करेंगे न झिड़कें क्योंकि हम यज्ञके या उताकी प्रबल शक्ति।
समय देवताओंसे उत्पन्न हुये का वर्णन करेंगे जिस
तेज घोड़ोंके गुणका वर्णन
करेंगे। को बुद्धिमान या विज्ञानमें में प्रवीण लोग अपने - उपायों में ( यशमें नहीं) “काममें लाते हैं।