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(७१) वस्तुत: ययेष्ट है, यद्वा उसके देवताओं की संख्या ३३ करोडसे कम नहीं मानी गई है क्योंकि इस देववंशके शेष देवता मुख्य ३३ तेतिसको ही, जो तीनमें और अन्ततः एक ही यानी स्वयम् भक्तकी परम पूज्य परमात्मा स्वरूप प्रात्मामें ही गर्मित हो जाते है, मानसिक सन्तान हैं। यह विदित होगा कि हमारी व्याख्या केरल उस अप्रसंगताको जो मि० गुरुदत्तके अर्थमें पाई जाती है और उस प्रतिरोधी अपनेको जो योरुपियन दार्शनिकोंके भावमें विदित है, दूर नहीं करती है वरन् हमको अपने देवताओं की जनसंख्या में सलग्न हिन्दू काल्पनिक शक्तिका पूरा दृश्य दिख जाती है। इन देवताप्रोक्री वशावलोके सम्बन्धमें बहुतसी उलझने और पेंच, जिन्होंने प्राधुनिक खोजी विद्वानों के दांत खट्टे कर दिये है, उनकी काल्पनिक उत्पत्तिके आधार पर सहजमें ही सुलझ जाते हैं, क्योकि जीवनकी विविध क्रियाओं के एक प्रकारले एक दूमरीमें गर्मित होनेके कारण यह समय समय पर अवश्य होगा कि उनकी उत्पत्तिके विचारोके प्रतिरूरक अपने पारस्परिक सम्बन्धियों ऐसे नामुताविक लक्षणों से परिपूर्ण हों जो अमर्मज्ञ मनुष्यको असध्य और इसलिये पूँठे प्रतीत हों। यह विदन होगा कि कुछ देवता स्वतः अपने पिताओंके पिता माने गये हैं और कोई अपने जन्मदाताओंके समकालीन, इस तरहको धोवेमें डालने. वाली कथायें केवल हिन्दुमतके ही विशेष लक्षण नहीं हैं वरन् मह रहस्यवाद और गुप्त शिता तमाम मनोंमें पाई जाती हैं,