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(७ ) पर निर्भर है आत्माकी उसके मुख्य उपयोग अर्थात् नसे सम्बन्ध रखनेवाली क्रियायें हैं। इस प्रकार वरुण जिसका भेष शम्शी वर्षके महीनेके तौर पर हास्यजनक है कर्म शक्ति का प्रतिरूपक है क्योंकि यह मनुष्योंके सत्य और फंठको देखता है (हिन्दू मेथोलोजी पृष्ठ ३६ ) । एक दूसरे स्थानमे वरुण का शासनक्षेत्र विशाल करके समस्त संसारको कायम किया है, क्योंकि यह आकाशमें पक्षियों के उड़ने दूर चलने पाली वायुफे मार्ग, समुद्रोंमें चलनेवाले अहाजोंके पथको जानता है और तमाम पदार्थोको जो हुये हैं या होंगे देखता है। वरुणको समुद्रका अधिपति माना है, अनुमानतः इस कारण कि समुद्र संसार (आवागमन) का चिह्न है।।
अन्य आदित्य इसी प्रकार वर्षके मास नहीं हो सके हैं परन्तु जीवके भिन्न भिन्न गुण हो सके हैं।
अव केवल इन्द्र और प्रजापतिका उल्लेख वाकी है, इनमें से पहिलेका वर्णन तो 'हम अन्य स्थान * पर कर चुके हैं परंतु पिछला प्रजाओं (वंशों अत: जीवनके अनेक कार्यों ) का पति अर्थात् मालिक है, और हृदयके प्रभाविक कर्तव्यका चिन्ह है, (देखो दि पर्मान्यन्ट हिस्ट्री औफ भारतवर्ष भाग १, पृष्ठ ४६२-४६६)।
उपरोक्त वर्णन समस्त हिंदू देवालयोंको व्याख्याके लिये
* देखो दि की औफ नालेज और दि कानफ्लुएन्स औफ ओप्पोजिट्स "(वा असहमत संगम)।