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विल्कुल ठीक र वैज्ञानिक नहीं है व्याख्याकी सत्यताको कमजोर नहीं करता है क्योंकि हमारा अभिप्राय केवल रहस्यवादके भावार्यके दर्शानेसे है न कि उसकी घटनाप्रोके विपरीत वैज्ञानिक सत्य प्रमाणिक करनेसे। • साधारण रीतिसे यह विदित होगा कि रहस्यवादमें विरोधता और असंगतिका अश इस वातका दृढ़ सूचक है कि विविध अपेक्षाओंसे प्राप्त क्रिये हुये परिणामोको नयवादकी आज्ञाका उलंघन करके मिश्रित कर दिया है । इसलिये इस कहने में विरोध होना संभव नहीं है कि जो कुछ बुद्धि और बुद्धिमत्ता के विपरीत धर्ममें पाया जाता है वह किसी सत्य वातका वर्णन नहीं है चाहे वह सत्य वात कोई व्यक्ति हो या प्राकृतिक घटना परन्तु यथार्थ और वास्तवमें एक मानसिक कल्पना है जो एक वहु प्रज कल्पना शक्ति के कारखानेमे किती साधारण नियमके प्राधार पर गढ़ी गई है। वेदोके पश्चातकी कहानाओंमेंसे वह करपना जो अब केवल हिन्दुओंही में नहीं घग्न् तीन चौथाई मानव जातिमें प्रचलित है अर्थात् रक सृष्टिकता और शासक ईश्वरको कल्पना इस नियमका सर्वोत्तम उदाहरण दे रही है। अनुमानतः विचारका वह अंश जिसके आधार पर यह कल्पना स्थापित हुई है विश्वकर्माको स्वरूप है जो देवनायोका शिलाकार और ऋषि करियों के आकार रचनासबंधी विचारों अर्थात् वस्तुओं के प्राकृतिक स्वभावका रूपक है । ऐसा जान पडता है कि हिन्दु मस्तिष्कने द्रव्योंकी स्वाभाविक क्रियाके भेदसे चकगकर अन्ततः