Book Title: Sanatan Jain Dharm
Author(s): Champat Rai Jain
Publisher: Champat Rai Jain

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Page 68
________________ ( ५६ ) करने का भार उन्हीं पर सौंपा। राजाने देवताओंका पक्षपात कर उन्हीं मतका अनुमोदन किया। इस पर ऋषियोंने क्रुद्ध हो राजा को शाप दिया । इस शापसे ही महाराज उसी विमान के साथ अधोविचार ( भूगर्भ ) को जा रहे हैं, ऐसा देख देवताओंको वडी लजा मालूम हुई। उन्होंने राजाको विष्णुकी आराधना करने का उपदेश दिया और 'शुभ कर्म में वसोर्धारा देना होगा' ऐमा ही विधान किया । इसीसे ही भूगर्भस्थित वसुको प्रोति होती है । आजकल भी विवाह इत्यादि शुभकर्मोमें 'वसोर्धारा' देने की नीति प्रचलित है । कालक्रमसे विष्णुने उन्हें मुक्त कर दिया । ( हिंदी - विश्वकोष, सप्तम भाग, पृष्ठ ४९३ ) 3 फुट नोट नं० २ उनके वेदार्थ की उत्तमता और मोलका और भी ठीक २. अनुमान करनेके लिये हम आर्य समाजियोंमें अग्नि और इन्द्रके स्वरूपकी जो स्वामी दयानन्दजीके अनुयायी और 'टर्मिनाकोजी श्रौफ दि वेदज' के प्रसिद्ध रचयिता मि० गुरुदत्त के कथनानुसार उष्णता या घोडोंके सिखानेकी विद्या और शासनकर्ता जाति क्रमानुसार है, जांच करेगे । गि० गुरुदत्त मैक्समूलर आदि पश्चिमी विद्वानोंकी कुशलताको चैलेज ( अस्वीकार ) करते है और करते हैं कि उन लोगोके अनुवादों में साधारण शब्दों को व्यक्तिवाचक मनायें मान लेने में अशुद्धियां हो गई है । यह ज्ञात रहे कि योरुपीय विद्वानोंने हिन्दू टोना कारों, नदीवर, सेन, आदिकी वृत्तियों की सहायताते ही अपने अनुवाद रचे हैं -

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