Book Title: Sanatan Jain Dharm
Author(s): Champat Rai Jain
Publisher: Champat Rai Jain

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ ( ५७ ) अनुवाचनमें जो चलिदानके समय पढ़े जाते थे, किसी त्रुटिके रह जानेके कारणसे अथवा किसी प्रकारके किसी और कारण है। इसी बीचमें यज्ञ करानेवाले होताओंके निमित्त यज्ञकी पूरी विधि भी तयार कर ली गई थी और प्राचारिक पद्धतिका एक-सम्पूर्ण नीति शास्त्र भी तय्यार हो गया था जिसमें छोटे छोटे यिमों पर भी अच्छी तरहसे विचार किया गया था। अनुमानतः प्राचीन (ऋग्वेटके ) समय के कुछ मन्त्रों में भी परवत और उसके मातहत शिष्योंके अनु. सार परिवर्तन कर दिया गया था। मगरकी राजधानीसे बढ़ कर यह नई शिक्षा दूर तक फेन गई और पिशाबके अपने निवास स्थानको प्रस्थान करने के पश्चात् भी होनाओंकी शक्तियां, जो उनको मिस्मरेजम, योगविद्या इत्यादिके अभ्यास से जिनमे मालूम होना है कि उनका भली प्रकार प्रवेश कराया गया था, प्राप्त हुई थी; लोगोको परवतके दुष्ट-मनकी ओर श्राकर्षण करनेमे पर्याप्त रहीं। इस कथनकी पुष्टि जव हम स्वयं हिंदु शास्त्रोके वाक्योंसे पाते हैं तो हमारा विचार उपर्युक्त जैन शास्त्रोमें वर्णित हिंसाके कारणकी सत्यता पर दृढ़ हो जाता है। देखिये-भारत शांति पर्वके ३३६ अध्यायमे लिखा है कि चंद्रवंशीय कृति राजाके वसु नामके पुत्र थे जो परम वैष्णव और स्वर्गगज इन्द्र के परम प्यारे मित्र थे। इन्द्रने इन्हें एक प्राकाशगामी रथ प्रदान किया था। इसी

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102