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( १६ ) 'और औरोले जिनमें मणि माणिकका जिक्र है यह नतीजा निकाला जा सक्ता है कि उस समयमें भी शारीरिक आभू. 'घणोंकी और अधिक ध्यान दिया जाता था। वस्त्र मनुमानतः रूई और उनके वनाए जाते थे, और वे करीब २ इसी प्रकारके थे जैसे वर्तमान काल में हैं। पगडीका उल्लेख है। सुई और तागेका वर्णन इस बातका सूचक है के सिले हुए कपडे नामालूम न थे ।.......लोहेसे सुरक्षित शहरो और दुर्गोका वर्णन है .... पीने वाले मादक पदार्थोका भी मंत्रो मे वर्णन है। करीव २ ऋग्वेदका एक कुल मंडल सोमरसकी प्रशंसासे भरा हुआ है । मदिरा या सुराका भी व्योहार था।
आर्योके मुख्य उद्यम संग्राम और कृपि थे । जो युद्ध करने मे सूर ठहरे उन्होंने धीरे २ प्रतिष्ठा और उच्च पदको प्राप्त किया, और उनके मुखिया राजा हो गये। जिन्होंने रणमें भाग नहीं लिया वह विश वा वैश्य या गृहस्थ कहलाये।"
वैदिक समय हिंदू समाजका वर्णन करते हुये डाक्टर विल्सन साहव लिखते हैं:
"यह वात कि आय्य लोग केवल एक जगलोमें फिरनेवाली जाति न थी बहुत स्पष्ट है। उनके शत्रुओंके भांति उनके गांव, शहर, और पशुशालायें थीं, और उनके पास बहुत तरहके यन्त उपयोगी सामिग्री, व सुखके साधन, दुरा. चारके उपकरण जो मनुष्य जातिकी एकत्रित मण्डलियों में