________________
( २० ) पाये जाते हैं, थे। वे पुनने व कातनेकी विधि भा जानत थ; जिस पर वे मुख्यतया निर्भर थे । वे लोहेले व्योहारसे भी अनभिज्ञ न थे और न लोहार, ठठेरे, बढ़ई व अन्य शिल्पकारोंके कार्योसे। वे कुल्हाडियोसे जङ्गलोके वृत्त काटते थे।
और अपनी गाड़ियोंको साफ व चिकना करनेके लिये रन्दे काममें लाते थे । युद्धके लिये जिसके वास्ते कभी २ वे शंखध्वनि परपकत्रित होते थे, वेवख्तर,गदा, कमान, तीर, वी तलवार या तबर और चक्र बनाते थे। उन्होने अपने धरेलू व्यवहार और देवोंकी पूजाके लिये कटोरे,कल्से, छोटेवड़े चम्चे बनाये थे । नाईका उद्यम करनेवालोंसे वे बाल कटवाते थे वे बहुमूल्य पाषाणों व जवाहिरातोका उपयोग करते थे, क्योंकि उनके पास सोनेकी वालियों, सोने के कटोरे और जवाहिरातकी मालायें थीं। उनके पास युद्ध के लिये रथ थे और साधारण व्योहारके लिये घोडो तथा वैलोकी गाड़ियां थीं। उनके पास जङ्गी घोडे थे और उनके वास्ते साईस भी थे। उनकी समाजमें खोजे हिजडे ) भी थे। ..... •माति २ की नावें वेड़े व जहाज भी वह लोग बनाते थे । वे अपने निवासस्थानोंसे कुछ दूर देशोंमें घ्यापार भी किया करते थे। कहीं २ इन मन्त्रों में समुद्रका भी उल्लेख है जिस तक चे अनुमानतः सिन्ध नदोके किनारे किनारे पहुंचे होंगे । उनमें से मनुष्योकी मण्डलियोका अर्थलाभके लिये जहाजों पर एकत्रित होकर जाना लिखा है