Book Title: Sanatan Jain Dharm
Author(s): Champat Rai Jain
Publisher: Champat Rai Jain

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Page 48
________________ स्माके समक्ष पूरा कर" (जदर ५. आयात ६ ता २५ ) जरोमिया नवो इस विचारको और पुष्टि करता है और इस प्रकार ईश्वरीय वाक्य घतलाता है कि:.......: मैंने तुम्हारे पुरुषाओंको नहीं कहा, न उनको आशा दी ....... •भुनी हुई बलि और जवीहोके लिये, परन्तु इस बातकी मैंने उनको आशा दी कि मेरी वातको सुनो...... और तुम उन सव रीतियों पर चलो जो कि मैंने तुमको बतलायी है ताकि तुम्हारे लिये लाभदायक हो" (जरीमिया नवीकी किताव अध्याय ७ श्रायात २१ ता २३)। इन वाक्यों में हिन्दूमतके परिवर्तनसे इतनी गहरी सहशता पाई जाती है कि यह आकस्मिक बात नहीं हो सकती और इस में उसी कर्ताका हाथ पाया जाता है जिसको प्रोफेसर ड्वायस्सनने वृहदारययको बलिदान सिद्धांतको धार्मिक भावमें परिधर्तन करते हुये पाया ( देखो दी सिस्टम श्राफ घेदान्त पृष्ठ ८) परन्तु यह कुरीति अव तक चली आई है। परिणाम यह है कि हिन्दूमत अपनी ही सन्तानको जिसका एक दूरके देशमें पालन पोषण दुपा है अपने ही सन्मुख उपस्थित और अपनी आक्षाका उल्लंघन करते हुये पाता है, और अपने ही शास्त्रोको गोमेधके विषयमें जो अब पूर्णतया घृणित हो गया है अपने विरोधियों के सिद्धांतोकी पुष्टि करते हुये पाता है। कुछ थोड़ा समय हुआ स्वामी दयानन्द सरस्वती संस्थापक आर्यसमाजने जो व्याक. रणके मच्छेशाता थे, इस बातसे एककलम (एकदम ) इन्कार

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