Book Title: Sanatan Jain Dharm
Author(s): Champat Rai Jain
Publisher: Champat Rai Jain

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Page 61
________________ ( ५२ ) प्रतिज्ञा से न हटने दिया। दूसरे दिन मामला राजाके सामने उपस्थित हुआ जिसने अपनी सम्मति परवत के अनुकूज दी। इस पर वसु मार डाला गया और परवत राजधानीसे दुर्गतिके साथ निकाल दिया गया । परन्तु उसने अपनी शक्ति भर अपनी शिक्षा के फैलानेका प्रगा कर लिया। पर्वत अभी सोच ही रहा था कि उसको क्या करना चाहिये कि इतनेमे एक पिशाच पाताल से ब्राह्मगा ऋषिका भेष बना कर उस के पास आया । यह पिशाच, जिसने अपना सांडिल्य ऋषिके तौर पर परवतको परिचय दिया । अपने पूर्व जन्म में मधुपिङ्गल नामी राजकुमार हुआ था जो अपने वैरी ( रकी) द्वारा धोखा खाकर अपनी भावी स्त्रीसे वञ्चित रक्खा गया था । इसका विवरण यो है कि मधुपिंगलको राजकुमारी सुल्सा के स्वयम्वर में वरमाला द्वारा स्वीकार किये जानेका पूरा मौका था क्योकि उसकी मांने उसको पहले निजी तौर से स्वीकार कर लिया था । उसके रकीय सगरको इस गुप्त प्रवन्धका हाल मालूम हो गया और सुल्साके प्रेम अन्धा होकर उसने अपने मंत्री से इस बात की इच्छा प्रगट की कि वह कोई यक्ष राजकुमारीकी प्राप्तिका करे । इस दुष्ट मंत्रीने एक बनावटी सामुद्रिक शास्त्र रचा और उसको गुप्त रीतिले स्वयम्बर मण्डपके नीचे गाड दिया और जब स्वयम्बर में आये हुये राजकुमारोंने अपने अपने श्रासन ग्रहण कर लिये' तो उसने कुलपूर्वक ज्योतिष द्वारा एक प्राचीन शास्त्रका स्वयम्वरके मण्डपके नीचे गड़ा होना बतलाया । किस्सा मुख्त t

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