Book Title: Sanatan Jain Dharm
Author(s): Champat Rai Jain
Publisher: Champat Rai Jain

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Page 59
________________ t भूले हुए भूत कालको जिसके कारण उसको बहुत दु:ख मिला है फिर स्मरण करने की चेष्टा कर रही है । स्वयम् एक सर्व विख्यात माताको संतान होनेके कारण हम उसको अपने पिछले ममयके, जब कि उसके बडे प्रशंसक कवि उस की तत्व शिक्षा के भावोकी प्रालंकारिक भाषा में परिवर्तन करके सहज बना दिया करते थे, कुछ कुछ सुमिरन करनेसे हर्षसे प्रफुल्लित होते हुए ध्यान कर सक्ते है । उसकी माता अब भी उसे हाथ पसारे हुए वापस लेनेको प्रस्तुत है, और यद्यपि वड व वृद्धा हो गई है तथापि वह प्रेम और क्षमासे आज भी वैसी ही पूर्ण है जैसी कि वह सदैव रही है । निस्सन्देह वह एक शुभ समय होगा जब कि हिंदू और जैनधर्मका पारस्प परिक संबंध पूर्णतया जान लिया जावेगा, और आशा है कि माता और पुत्रीका " शुभसम्मेलन सव सम्बन्धियोंको शान्ति और आनन्द प्रदान करेगा 1 0 ) 000 इति

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