Book Title: Sanatan Jain Dharm
Author(s): Champat Rai Jain
Publisher: Champat Rai Jain

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Page 62
________________ ( ५३ ) सर जाली दस्तावेज खोद कर निकाला गया और समाने मंत्री से उसके पढ़ने का अनुरोध किया । उसने शास्त्र पढ़ना प्रारम्भ किया और शीघ्र ही आखोके वर्णन पर छाया जिसके कारण मधुपिङ्गल विशेषतया प्रसिद्ध था बड़े हर्प सहित मधुपिङ्गलके उस शत्रुने बनावटी सामुद्रिक शास्त्र के एक एक शब्दको, जिसमें मधुपिंगलके ऐसी आंखोकी चुराई की गई थी, जोर दे दे कर पढ़ा, कि वह दुर्भाग्यकी सूचक होनी है और उनका स्वामी कर्महीन, अभागा, मित्र ओर कुटु स्त्रियोंके लिये अशुभ है । बेचारे मधुपिंगलके आंसू निकल प्राये और वह समासे उठ गया । इस कपट-क्रिया के द्वारा परास्त, दुःखित और लजित हो कर उसने अपने कपड़े फाड़ डाले और संसारको त्याग सन्यासीका जीवन व्यतीत करना आरम्भ किया। इस समय सुहसाने स्वयम्बर में प्रवेश किया और सगर को अपना पति स्वीकार किया । इसके कुछ काल पश्चात् मधुपिंगलने एक सामुद्रिक के जानकारसे सुना कि उसके साथ छल किया गया और धोखा हुआ तथा अन्याय युक्त विधियोंसे उसकी भावी स्त्री से उसको प्रथक् किया गया । उसने उसी कोधकी हालतमें जो धोखे के हालके खुल जानेसे उत्पन्न हुआ था, अपने प्राण तज दिये । मरकर वह पाताल में पिशाच योनिमें उत्पन्न हुआ जहां उसको अपने पूर्व जन्मके धोखा खानेका बोध हो गया और यह वहांसे अपने शत्रुओसे बदला लेनेको चला। वह तुरन्त

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