________________
(४६) -बना दिया, और उनका वास्तविक उपयोग उस व्यर्थ वादविवाद पर सीमित है जो वेदोंके अनुयाइयों में यरावर जारी है।
सत्य यह है कि एक पूर्व स्थापित वैज्ञानिक धर्मसे जन्म पानेके पश्चात् ऋग्वेदके रहस्यपूर्ण काव्यमें, जो अाधुनिक धमकी नीव है, भूत कालमें इतनी वृद्धियां व तब्दीलियां हुई है कि लोग उसकी इन्तदाको भूल गये हैं जिनमेंसे एक फिर्के को जो आज कल विद्या कोर्तिके पात्र हो रहे हैं. उसमें एक वानर जातिसे विकसित मस्तिष्कके विचारोके सिवाय और कुछ नहीं देखता है और दूसरेको जो धर्मके अंधश्रद्धानी है हरएक अक्षर और शब्दमें ईश्वरीय वाक्य हो दिखाई देता है। अगर वह परिणाम जो इन पृष्टोमें निकाला गया है, सही है तो इन दोनों विचारोंमसे कोई भी सत्य नहीं है, क्योंकि ऋषि कवि शिक्षित बालक न थे, जैसा कि वे समझे जाते हैं, और न वह किसी दैवी वाणीसे उत्तेजित ही थे। जन्मसे ही हिन्द धर्म जैनधर्मकी एक शाखा थी, गोकि उसने अपने पापको शीघ्र ही एक स्वतन्त्र धर्मके रूपमें स्थापित कर लिया। समयके व्यतीत होने पर वह किसी राक्षमी प्रभावमें आगया। जिसका 'विरोधीप्रान्दोलन उपनिषदोकी बुद्धिमत्ता और जगत प्रसिद्ध दर्शनों, न्याय, वेदांत श्रादिकी कलि व कालका लक्ष्य है। अपने श्रापको एक स्वतन्त्रमत स्थापित कर देने के कारण स्वाभाविकही वह जैन मतको अपना विरोधी समझने पर वाध्य हुआ, और दर्शनोंमेंसे कुछमें जैन सिद्धान्तके खण्डनार्थ सूत्र भी लिखे गये हैं, यद्यपि