Book Title: Sanatan Jain Dharm
Author(s): Champat Rai Jain
Publisher: Champat Rai Jain

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Page 21
________________ (१२) वैज्ञानिक दर्शन है और इस खलाकी सबसे बड़ी बात यह है कि इसमेंसे एक कडीका निकलना भी विना कुलकी कुल लड़ी के तोड़नेके असम्भव है अतः यह सिद्ध होता है कि जैन धर्म कोई ऐसा धर्म नहीं है जिसको समयके अनुसार सुधारों अथवा उन्नति प्रादिकी श्रावश्यक्ता हो। क्योंकि जो प्रारम्भसे ही अपूर्ण होता है केवल वह हो अनुभव द्वारा उन्नति पा सक्का वैदिक समयके हिन्दधर्मको देखनेसे हम जैन धर्मके सदृश क्रमवद्ध पूर्णता न तो ऋग्वेदमें ही और न अवशेप तीनों वेदोंमें ही पाते हैं । जिनके रचयिता केवल अग्नि. इन्द्र, सदृश कथा नक देवताओंकी प्रशंसा करके सन्तुष्ट हो गये हैं। सुतरां पुनजन्मका सिद्धान्त ही जो सत्य धर्मका मुख्य अङ्ग है वेदोंके कथानकोंमें कठिनतासे मिलता है और जैसा कि योरुपीय विद्वानोंका कहना है वेदों में केवल एक स्थानपर ही उसका उल्लेख पाया है, जहां 'श्रात्माका जल वनस्पतिमें स्थानांतर होने का वर्णन इस प्रकार हम सिवाय इसके अपनी और कोई सम्मति स्थिर नहीं कर सक्ते हैं कि प्रारम्भिक हिन्दूधर्मका अर्थ यदि उसके बाह्य (स्थूल ) भावमें लगाया जावे तो वह जैन धर्मसे उसी प्रकार मित्रता रखता है जिस प्रकार कि दो असहश और निन्न वस्तुएं रखती हैं और वेदोंको जैन धर्म का निकासस्थान कहना असम्भव हो जाता है। यथार्थमें वास्तविकता

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