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२. दृष्टि दोष के जोखिम ओपन बाज़ार में सभी कितने ही सौदे कर डालते हैं? शाम होतेहोते बीस-पच्चीस सौदे तो हो ही चुके होते हैं। यदि शादी में गए हों तो? देखने से ही सौदे हो जाते हैं। जब ज्ञान होता है, तब शुद्धात्मा देखता है, इसलिए सौदे नहीं होते। कुछ आकर्षक देखे, तो दृष्टि खिंच ही जाती है। ये तो आंख के ही चमकारे हैं न? आँखें देखें और चित्त चिपके। इसमें गुनाह किस का? आँखों का? मन का? या अपना? गुनाह 'अपना' ही है! इसमें आँखों का क्या दोष? उनमें मिर्च डालने से दृष्टि खिंचनी बंद हो जाएगी क्या? मन कुछ भी दिखलाए, लेकिन यदि हम हस्ताक्षर नहीं करें तो? भैंस की भूल पर चरवाहे को मार? दृष्टि ज़रा सी भी खिंचे तो पूरा दिन उसका प्रतिक्रमण करते रहना होगा।
व्यवहार में स्त्री-पुरुष एक-दूसरे को मान दें तो उसमें हर्ज नहीं है, लेकिन नज़रें झुकाकर बात करनी चाहिए, क्योंकि मान से तो दृष्टि तुरंत ही बिगड़ जाती है। कुछ लोगों में मान की गाँठ के आधार पर विषय होता है और कुछ लोगों में विषय के आधार पर भी मान की गाँठ होती है। यानी एक का आधार निराधार होते ही दूसरा खत्म हो जाएगा। जिनमें आधार विषय है, उनका विषय चला जाने पर मान चला जाएगा और जिनका आधार मान है, उनका मान जाने पर विषय चला जाएगा।
आजकल मुँहबोले भाई-बहन या कज़िन्स के बीच में बहुत विषय चलता है, इसलिए वहाँ सावधान रहना। स्त्री-पुरुष के बीच बिल्कुल भी लप्पन छप्पन (बेमतलब का व्यवहार या लेन-देन) नहीं रखनी चाहिए।
भले ही कितने भी शुद्धात्मा भाव से देखें लेकिन दृष्टि तो गड़नी ही नहीं चाहिए! किसी ने दो मीठे शब्द बोले कि दृष्टि स्लिप हुए बगैर रहेगी नहीं। व्यवहार में साधारण मान चलाया जा सकता है, लेकिन ज़रा सा भी विशेष, अत्यधिक मान देने लगे तो वहाँ पर स्लिप हुए बगैर रहेगा ही नहीं। जिसके प्रति दृष्टि बिगड़े, तो दूसरे जन्म में वहाँ जाना ही पड़ता है।
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