Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ उपोद्घात खंड - १ विवाहितों के लिए ब्रह्मचर्य की चाबियाँ १. विषय नहीं, लेकिन निडरता ही विष संसार के सभी ब्रह्मचर्य के उपदेशकों ने विषय को ही विष कहा है। जबकि 'अक्रमविज्ञान' ने ऐसा कहा है कि, 'विषय विष नहीं हैं, विषयों में निडरता, वह विष है। इसलिए विषय से डरो।' 'विषय में मुझे हर्ज नहीं है, मैं चाहे जैसे बर्तृ' ऐसी निडरता ही विष है! विषय से डरनेवाला, विषय सेवन में निरंतर खेद, खेद और खेद रखनेवाला, उस दोष से छूट जाता है। अर्थात् हक़ के विषय की भी 'ज्ञानीपुरुष' ने छूट तो दी ही नहीं है, विषय भले ही विष नहीं हो लेकिन विषय में निडरता तो होनी ही नहीं चाहिए क्योंकि निडरता को ही 'ज्ञानीपुरुष' ने विष कहा है! यानी विषय में तो अंत तक निडर होना ही नहीं है। हक़ के विषय के बारे में 'ज्ञानीपुरुष' क्या कहना चाहते हैं कि 'यह दवाई' मीठी है, इसलिए रोज़-रोज़ नहीं पीनी चाहिए। यह 'दवाई जैसा' है और 'बुख़ार' चढ़ने पर, दोनों में से किसी एक को नहीं लेकिन दोनों को बुख़ार चढ़े और वह असह्य हो जाए, तभी दवाई पीनी चाहिए, वर्ना, यदि मीठी है इसलिए बार-बार पीने लगे तो वह दवाई ही पॉइज़न बन जाएगी। उसके लिए फिर डॉक्टर ज़िम्मेदार नहीं है! मानो पुलिसवाला पकड़कर ले जाए और चार दिन भूखा रखने के बाद डंडे मारकर मांसाहार करवाए, उस समय जैसे बरबस-मज़बूर होकर, चिढ़कर मांसाहार करना पड़े, उसी प्रकार विषय सेवन करना चाहिए। वर्ना विषय में मिठास की मान्यता ऐसी छा जाती है कि जागृति, ध्यान, ज्ञान आदि सबकुछ खत्म हो जाता है और महा पुण्ययोग से गृहस्थाश्रम में प्राप्त मोक्षमार्गीय विज्ञान को धक्का मार देती है!

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 326