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अनुभव का प्रमाण अक्रमविज्ञान प्राप्त विवाहित लोगों ने सिद्ध किया है। वे भी मोक्षमार्ग की प्राप्ति करके आत्यंतिक कल्याण साध सकते हैं। 'गृहस्थाश्रम में मोक्ष!' यह विरोधाभासी लगता है, फिर भी सैद्धांतिक विज्ञान द्वारा विवाहितों ने भी मोक्षमार्ग पाया है, ऐसी हक़ीक़त प्रमाणभूत साकार हुई है। अर्थात् 'गृहस्थ जीवन मोक्षमार्ग में बाधक नहीं है!' उसका कोई प्रमाण तो होगा न? उस प्रमाण को प्रकाशमान करनेवाली वाणी उत्तरार्ध के खंड-१ में संकलित हुई है।
'ज्ञानीपुरुष' से स्वरूपज्ञान प्राप्त विवाहितों के लिए कि जो विषयविकार परिणाम और आत्मपरिणाम की सीमारेखा की जागृति के पुरुषार्थ में हैं, उन्हें ज्ञानीपुरुष की विज्ञानमय वाणी से, विषय के जोखिमों के सामने अविरत जागृति, विषय के सामने खेद, खेद और खेद, एवं प्रतिक्रमण रूपी पुरुषार्थ, आकर्षण के किनारे से डूबे बिना बाहर निकल जाने की जागृति देनेवाले समझ के सिद्धांत, जिनमें कि 'आत्मा का सूक्ष्मतम स्वरूप, उसका अकर्ता-अभोक्ता स्वभाव' और 'विकार परिणाम किसका', 'विषय का भोक्ता कौन', और 'उस भोग को अपने सिर पर लेनेवाला कौन?', इन सभी रहस्यों का स्पष्टीकरण जो अन्य कहीं भी खुला नहीं हुआ है, वह यहाँ सादी, सरल और आसानी से समझ में आए, ऐसी शैली में प्रस्तुत हुआ है। इसे समझने की शर्त को ज़रा सा भी चूकने पर, यह सुवर्णकटारी समान बन सकती है। इसके जोखिम और साथ ही निर्भयता प्रकट करती हुई वाणी, यहाँ उत्तरार्ध खंड-२ में प्रस्तुत हो रही है।
सर्व संयोगों से अप्रतिबद्ध रहकर विचरते हुए, महामुक्त दशा का आनंद लेनेवाले ज्ञानीपुरुष ने कैसा विज्ञान देखा! जगत् के लोगों ने मीठी मान्यता से विषय में सुख का आनंद लिया, किस तरह उनकी दृष्टि विकसित करने से उनकी विषय संबंधी सभी उल्टी मान्यताएँ छूट जाएँ और महामुक्तदशा के मूल कारणरूप, ऐसे 'भाव ब्रह्मचर्य' का वास्तविक स्वरूप समझ की गहराई तक फिट हो जाए, विषयमुक्ति हेतु कर्तापन की सारी भ्रांति टूटे और ज्ञानीपुरुष ने खुद जो देखा है, जाना है और अनुभव किया
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