Book Title: Samaysara Part 02
Author(s): Bhagwandas Mansukhbhai Mehta
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram
View full book text
________________
સમયસાર : આત્મખ્યાતિ
संचेतये ॥३०॥ नाहं संज्वलनमायाकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥३१॥ नाहमनंतानुबंधिलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये
॥३२॥ नाहमप्रत्याख्यानवरणीयलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव
संचेतये ॥३३॥ नाहं प्रत्याख्यानवरणीयलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेवसंचेतये
॥३४॥ नाहं संज्वलनलोभकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥३५॥ नाहं हास्यनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥३६॥ नाहं रतिनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥३७॥ नाहं अरतिनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥३८॥ नाहं शोकनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥३९॥ नाहं भयनोकषायवेदनीयमोहनीयफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥४०॥ नाहं जुगुप्सानोकषायवेदनीयमोहनीयफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥४१॥ नाहं स्त्रीवेदनोकषायवेदनीयमोहनीयफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥४२॥ नाहं पुंवेदनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥४३॥ नाहं नपुंसकवेदनोकषायवेदनीयमोहनीयकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥४४॥ नाहं नरकायुःकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥४५॥ नाहं तिर्यगायुःकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥४६॥ नाहं मानुषायुःकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥४७॥ नाहं देवायुःकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥४८॥ नाहं नरकगतिनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥४९॥ नाहं तिर्यग्गतिनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥५०॥ नाहं मनुष्यगतिनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥५१॥ नाहं देवगतिनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥५२॥ नाहमेकेंद्रियजातिनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥५३॥ नाहं बींद्रियजातिनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥५४॥ नाहं त्रींद्रियजातिनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥५५॥ नाहं चतुरिंद्रियजातिनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥५६॥ नाहं पंचेंद्रियजातिनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥५७॥ नाहमौदारिकशरीरनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥५॥
७३४

Page Navigation
1 ... 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952