Book Title: Samaysara Part 02
Author(s): Bhagwandas Mansukhbhai Mehta
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram
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સર્વ વિશુદ્ધ જ્ઞાન પ્રરૂપક નવમો અંકઃ સમયસાર ગાથા ૩૮૭-૩૮૯ : કર્મફળ સન્યાસ ભાવના नाहं प्रशस्तविहायोगतिनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥ ११९ ॥ नाहमप्रशस्तविहायोगतिनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥ १२० ॥ नाहं साधारणशरीरनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१२१॥ नाहं प्रत्येक शरीरनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१२२॥ नाहं स्थावरनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥ १२३॥ नाहं सनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥ १२४॥ नाहं सुभगनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥ १२५ ॥ नाहं दुर्भगनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥ १२६॥ नाहं सुस्वरनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१२७॥ नाहं दुःस्वरनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥ १२८ ॥ नाहं शुभनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥ १२९॥ नाहमशुभनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१३०॥ नाहं सूक्ष्मशरीरनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥ १३१ ॥ नाहं बादरशरीरनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१३२॥ नाहं पर्याप्तनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१३३॥ नाहमपर्याप्तनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥ १३४॥ नाहं स्थिरनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१३५॥ नाहमस्थिरनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१३६॥ नाहमादेयनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१३७॥ नाहमनादेयनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१३८॥ नाहं यशःकीर्तिनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१३९॥ नाहमयशःकीर्तिनामकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१४०॥ नाहं तीर्थकरत्वनामकर्णफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१४१॥ नाहमुच्चैर्गोत्रकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥ १४२ ॥ नाहं नीचैर्गोत्रकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१४३॥ नाहं दानांतरायकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥ १४४ ॥ नाहं लाभांत रायकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥ १४५॥ नाहं भोगांतरायकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१४६॥ नाहमुपभोगांतरायकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१४७॥ नाहं वीर्यांतरायकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ॥१४८॥
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