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समत्वयोग और प्लेटो
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'न्याय' को प्लेटो ने चतुर्थ सद्गुण माना है । पर यह अन्य तीन सद्गुणों - आत्मनिग्रह, साहस एवं विवेक से भिन्न कोई अन्य सद्गुण नहीं है वरन् इसकी उत्पत्ति इन्हीं के सामंजस्य से होती है। न्यायी समाज वह समाज है जिसमें उपर्युक्त तीनों गुणों में पूर्ण सामंजस्य हो । दूसरे शब्दों में समाज के सभी वर्ग मिलजुल कर कार्य करें, तभी समाज 'न्यायी' समाज बनता है।
व्यक्ति या आत्मा के संदर्भ में भी प्लेटो ने न्याय के प्रश्न को उठाया है । प्लेटो आत्मा के तीन पहलू मानते हैं । इच्छात्मक (Appetitive), भावात्मक (Spirited) तथा ज्ञानात्मक ( Rational) पहलू । जब इन तीनों पहलुओं में सामंजस्य होता है तब आत्मा में न्याय की उत्पत्ति होती है। फॉयड (मनोविश्लेषणवादी मनोवैज्ञानिक) ने भी व्यक्तित्व के तीन पहलू इड, ईगो, एवं सुपरईगो माने हैं । 'इड' का सम्बन्ध इच्छाओं ( दमित) से है । 'ईगो' व्यक्तित्व का वह पहलू है जो वास्तविकता ( Reality) के सम्पर्क में आता है तथा 'सुपरईगो' का निर्माण, सामाजिक, धार्मिक एवं नैतिक आदर्श करते हैं । अगर इन तीनों पहलुओं में सामंजस्य होता है तो वह व्यक्तित्व सामान्य व्यक्तित्व कहलाता है । व्यक्ति के व्यवहार में असामान्यता तब आती हैं जब 'ईगो' इड या सुपरईगो द्वारा परिचालित होता है ।
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