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समत्वयोग और कार्ल मार्क्स
५५ ___अहिंसा का अधिष्ठान मन के धरातल पर अपने और दूसरों के मध्य समत्व है । स्वयं को, जो शोषित मानकर यदि हमारे भीतर दूसरों से स्वयं को विशिष्ट समझने तथा उनके अहित की कीमत पर अपना हित-साधन करने की मूल प्रवृत्ति कायम है तो हम किसी भी क्रान्ति द्वारा, चाहे वह हिंसक हो या अहिंसक, समाज से शोषण का अन्त नहीं कर सकते । महावीर का मार्ग शुद्धि का है .- धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ ।
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