Book Title: Samatvayoga Ek Samanvay Drushti
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Navdarshan Society of Self Development Ahmedabad

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Page 272
________________ २५० समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि मार्क्सवाद द्वारा किया गया है। मार्क्सवाद की ओर आज की पीढ़ी का बढ़ता हुआ आकर्षण उसकी दार्शनिक यथार्थता का परिणाम नहीं, अपितु भूखे और नंगे मानव को दिये गये रोटी व कपड़े के तात्कालिक प्रलोभन का प्रतिफल है। किन्तु यह मानना भी सही नहीं है कि रोटी व कपड़े का समान वितरण करनेवाले दर्शनाभास की सारी दार्शनिक बातें भी यथार्थ हैं। विकासवाद व द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सहारे वैज्ञानिक भी आत्मा के विषय में किसी अन्तिम निर्णय तक नहीं पहुंच पाये हैं । भौतिक जगत् में चैतन्य एक रहस्यपूर्ण सत्ता भी थी और अब भी है। किन्तु आत्मा के जिस पहलू पर दर्शन व विज्ञान नितान्त प्रतिकूल दिशा में थे, आज विज्ञान के नये मोड़ ने दोनों को बहुत कुछ समीप ला दिया है। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक सर जेम्स जीन्स के शब्दों में कहें तो - “दर्शन और विज्ञान की सीमा-रेखा जो एक प्रकार से निकम्मी हो चुकी थी, वैचारिक पदार्थ विज्ञान (Thoeretical Physics) के निकट मृत में होने वाले विकास के कारण अब वही सीमा-रेखा महत्त्वपूर्ण और आकर्षक बन गई है। ७. अनेकान्तवाद : प्रमुख दार्शनिकों की आलोचनाओं का निराकरण जैन दर्शन ने दर्शन शब्द की काल्पनिक व्याख्याओं से ऊपर उठकर तत्त्वचिन्तन के क्षेत्र में बद्धमूल एकान्तिक धारणाओं का उन्मूलन करने एवं वस्तु के यथार्थ स्वरूप को अभिव्यक्त करने के लिए अनेकान्तदृष्टि और स्याद्वाद की भाषा दी है। इस देन में उसका यही उद्देश्य रहा है कि विश्व अपने वास्तविक स्वरूप को समझे कि उसका प्रत्येक चेतन और जड़ तत्त्व अनंतधर्मों का भण्डार है। प्रत्येक वस्तु अनन्त गुण, पर्याय और धर्मों का पिण्ड है। वह अपनी अनादि-अनन्त संतान-स्थिति की दृष्टि से नित्य है। कभी भी ऐसा समय नहीं आ सकता जब विश्व के रंगमंच से एक कण का भी समूल विनाश हो जाये या उसकी संतति उच्छिन्न हो जाये । साथ ही उसके पर्याय प्रतिक्षण बदल रहे हैं । उसके गुणधर्मों में सदृश या विसदृश परिवर्तन हो रहा है, अत: यह अनित्य भी है। इसी तरह अन्त गुण, शक्ति, पर्याय और धर्म प्रत्येक वस्तुकी निजी संपत्ति है, लेकिन हमारा स्वल्प ज्ञान इनमें से एक-एक अंश को विषय करके क्षुद्र मतवादों की सृष्टि कर रहा है। __ स्याद्वाद के उक्त दृष्टिकोण को नहीं समझकर और वस्तु को यथार्थ दृष्टिकोण से 1. Physics and Philosophy, Preface - Sir James Jeans. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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