Book Title: Samatvayoga Ek Samanvay Drushti
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Navdarshan Society of Self Development Ahmedabad

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Page 327
________________ समत्व प्राप्ति की प्रक्रिया - योग, तप, आध्यात्मिक,.... ३०५ सके। वह प्रमाण, अनुमान और उपमान का विषय नहीं है, इसलिए निरूपम है। वह अर्हन्त भगवान् के ही प्रत्यक्ष है और स्वानुभवगम्य है। अन्य विद्वान उन्हीं के कहे अनुसार उसका ग्रहण करते हैं और उसके अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। मोक्ष सुख छद्मस्थों की परीक्षा का विषय नहीं है। औपपातिक सूत्र में वर्णन है - सिद्ध शरीर रहित होते हैं। वे चैतन्यघन और केवलज्ञान, केवलदर्शन से संयुक्त होते हैं। साकार और अनाकार उपयोग उनके लक्षण हैं। सिद्ध केवलज्ञान से संयुक्त होने पर सर्वभाव गुणपर्याय को जानते हैं और अपनी अनन्त केवलदृष्टि से सर्वभाव देखते हैं। न मनुष्य को ऐसा सुख होता है और न सब देवों को जैसा कि अव्याबाध गुण को प्राप्त सिद्धों को होता है। जैसे कोई म्लेच्छ नगर की अनेकविध विशेषताओं को देखने पर भी उपमा न मिलने से उसका वर्णन नहीं कर सकता, इसी तरह सिद्धों का सुख अनुपम होता है। उसकी तुलना नहीं हो सकती। जैसे कोई मनुष्य सर्व प्रकार से, पाँचों इन्द्रियों को सुख उत्पन्न करने वाला भोजन कर, क्षुधा और प्यास से रहित हो अमृत पीकर तृप्त होता है वैसे ही अतुल निर्वाण-प्राप्त सिद्ध सदाकाल तृप्त होते हैं। वे शाश्वत सुखों को प्राप्त कर अव्याबाध सुख के धनी होते हैं । सम्पूर्ण कार्य सिद्ध करने के कारण वे सिद्ध हैं। सर्व तत्त्व के पारगामी होने से बुद्ध हैं । संसार-समुद्र को पार करने के कारण पारंगत हैं। हमेशा सिद्ध रहेंगे अत: परम्परागत हैं ; जन्म, जरा, मरण के बन्धन से मुक्त हैं । वे अव्याबाध सुख का अनुभव करते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में भी कहा है कि लोक के अग्रभाग पर पहुंचकर जीव परम सुखी होता है। मोक्ष आत्मविकास की चरम एवं पूर्ण अवस्था है। पूर्णता में किसी प्रकार का भेद नहीं होता, अत: मुक्तात्माओं में भी कोई भेद नहीं है। प्रत्येक आत्मा अनन्तज्ञान, दर्शन और अनन्तगुणों से परिपूर्ण है। सिद्धों में जो पन्द्रह भेदों की कल्पना की गई है वह केवल लोक-व्यवहार की दृष्टि से है, किन्तु मुक्त जीवों में किसी प्रकार का भेद नहीं है। ___मोक्ष की प्राप्ति मानव-शरीर द्वारा ही होती है। देव स्वर्गीय स्वभावानुसार विरतिरहित होते हैं, अत: वे देवगति में से मुक्ति का परमधाम प्राप्त नहीं कर सकते । जो मोक्ष के योग्य होता है वह भव्य कहलाता है। अभव्य दशावाला मोक्ष के योग्य नहीं होता। ___जैन शास्त्र के अनुसार ईश्वर का लक्षण है - “परिक्षीणसकलकर्मा ईश्वर:' अर्थात् जिसके सम्पूर्ण कर्मों का निर्मूल क्षय हुआ है वह ईश्वर है। पूर्वोक्त मुक्तावस्था जिन्होंने प्राप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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