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समत्व प्राप्ति की प्रक्रिया - योग, तप, आध्यात्मिक,.
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कायोत्सर्ग चित्त की एकाग्रता पैदा करता है और आत्मा को अपना स्वरूप विचारने का अवसर देता है, जिससे आत्मा निर्भय बनकर अपना कठिनतम उद्देश्य सिद्ध कर सकती है। इसी कारण कायोत्सर्गक्रिया आध्यात्मिक है ।
कायोत्सर्ग तप में सबसे प्रमुख है । यही कारण है कि आगम साहित्य में काउस्सग्ग कोही पूर्ण व्युत्सर्ग तप बता दिया है। कायोत्सर्ग में जो साधक सिद्ध हो जाता है वह सम्पूर्ण व्युत्सर्ग तप में भी सिद्ध हो जाता है ।
अनशन से लेकर व्युत्सर्ग तक इन बारह तपों का एक अस्खलित क्रम है तप धारा का यह एक निर्मल प्रवाह है जो निरन्तर विकास पाता है ।
उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट है, कि जैन धर्म का तप कायदन्ड रुप नहीं है, अपितु उसने मानसिक शुद्धि पर भी उतना ही बल दिया है।
(३) ध्यान
चित्त को किसी विषय पर केन्द्रित करना ध्यान कहा गया है, तथा उसे निर्जरा एवं संवर का कारण भी बताया है। मन की एकाग्र अवस्था का नाम ध्यान है । आचार्य हेमचन्द्र
ने कहा
अपने विषय में (ध्येय में) मन का एकाग्र हो जाना ध्यान है आचार्य भद्रबाहु ने भी यही बात कही है कि - चित्त को किसी भी विषय पर स्थिर करना, एकाग्र करना ध्यान है। ' आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने तो ध्यान की परिभाषा करते हुए कहा - "शुभैक प्रत्ययो शुभ और पवित्र आलम्बन पर एकाग्र होना ध्यान है ।
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ध्यानम्
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पवित्र विचारो में मन को स्थिर करना धर्म ध्यान है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो आत्मा का, आत्मा के द्वारा आत्मा के विषय में सोचना, चिन्तन करना ध्यान है । '
१. जैनधर्म में तपः स्वरुप और विश्लेषण पृ. ५२३
२. ध्यानं तु विषये तस्मिन्नेकप्रत्यय - संततिः ।
३. चित्तस्सेगग्गया हवइ झाणं ।
४. द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका १८/११
५. तत्त्वानुशासन ७४
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अभिधान चिन्तामणि कोष १ / ४८
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