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समत्व - योग प्राप्त करने की क्रिया - सामायिक
१९७ (९) मल : शरीर को खौर खुंजकर मैल निकालना । (१०) विमासण : गाल पर हाथ रखकर चिंता में बैठ रहना । (११) निद्रा : सामायिक में नींद के झटके खाना या सो जाना ।
(१२) वैयावच्च : सामायिक में दूसरे के पास सर या पैर दबवाना, मालिश करवाना इत्यादि सेवा दूसरों के पास लेना । कई लोग वैयावच्च के विकल्प में वस्त्र संकोचन को भी दोष मानते हैं। यह दोष इस प्रकार है। सर्दी और गर्मी के कारण या निष्प्रयोजन वस्त्रों को बराबर करना । कई आचार्यों ने वैयावच्च के विकल्प में कंपन' दोष बताया है। शरीर काँपने लगे यह कंपन दोष है। (सामायिक में काया के इन बारह प्रकार के दोषों के लिए निम्नलिखित गाथा भी है।)
पल्लठि अथिरासन, दिशि पडिवति कज अर्बु भे अंगोवंगमोहणं आलस करडक मलकंडु। विमासणा तह उंघणाड़ इव दुवालस दोस वजियस्स काय समइ विशुद्धं अगविहं तस्सं सामाइयं ।
अतिचार
पाक्षिकादि पर्व के दिन प्रतिक्रमण में वंदीत्तु-सूत्र में तथा बड़े अतिचार में सामायिक के लिए निम्नलिखित पाठ दिया गया है। उसमें सामायिक के अतिचार स्पष्ट रूप से दर्शाये गये
वंदीत्तु-सूत्र में सामायिक व्रत के अतिचार के लिए निम्नलिखित गाथा दी गई है :
तिविहे दुप्पणिहाणे अण व तणे तहा सइ विहूणे
सामाइय वितहकए, पढमे सिक्खावहे निदे। तीन प्रकार के दुष्प्रणिधान का (मन, वचन और काया के) सेवन करना तथा अविनयपूर्वक सामायिक करना और स्मृतिभ्रंश से सामायिक व्रत भूल जाना और इस प्रकार झूठी रीत से सामायिक करने से प्रथम शिक्षाव्रत संबंधी अतिचार की मैं निंदा करता हूँ।
प्रथम शिक्षाव्रत सामायिक के पाँच अतिचार बताये हैं। अतिचार अर्थात् विराधना । अतिचार अर्थात् देश-भंग अर्थात् व्रत का आंशिक भंग ।
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