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समन्वय, शान्ति और समत्वयोग का आधार - अनेकान्तवाद
२३५ गाँधीजी ने १९३३ ई. में डॉ. पट्टाभि से कहा था कि जब मैं किसी मनुष्य को सलाह देता हूँ तब अपनी दृष्टि से नहीं किन्तु उसीकी दृष्टि से देता हूँ। इसके लिए मैं अपने को उसके स्थान में रखने का प्रयत्न करता हूँ। जहाँ मैं यह क्रिया नहीं कर सकता वहाँ सलाह देने से इन्कार कर देता हूँ॥
"I advise a man not from my standpoint but from his. I try to put myself in his shoes. When I cannot do so, I refuse to advise.?
इस प्रकार की देखने-सोचने की आदत प्रत्येक विषय में हो तो हमें बहुत सी वस्तुएँ अनोखे स्वरूप में ही दिखाई देंगी। इसका एक उदाहरण देती हूँ - “स्त्री की बुद्धि हमेशा तुच्छ ही होती है।” इत्यादि स्त्रियों की हीनता दिखानेवाले अनेक वचन पुरुषों ने लिखे हैं। स्त्रियों की तार्किक शक्ति पुरुषों के समान नहीं है, यह सच है। विलियम हेलिट ने कहा है स्त्रियाँ मिथ्या तर्क नहीं करती क्योंकि वे तर्क करना जानती ही नहीं women do not reason wrong for they do not reason at all.
किन्तु आँख के दर्शनमात्र से पुरुष के हृदय की परीक्षा करने की जो शक्ति स्त्री में है वह पुरुष में नहीं है। यह भी सच है कि पुरुष में बुद्धि का और स्त्री में भावना का प्राधान्य है। पुराना स्थान छोड़कर नया स्थान स्वीकृत करना पुरुष के लिए सहज नहीं है, पुराने की ममता छोड़ना पुरुषों के लिए सरल नहीं है, किन्तु स्त्री ? वह एक स्थान तथा कुटुम्ब की माया ममता-छोड़ कर किसी अन्य स्थान तथा अनजान परकीय व्यक्तियों को सहज ही में स्वकीय बना लेती है ।:
When crowned with blessings She doth rise To Take her latest leave of home, As parting with a long embrace, She enters other realms of love."
इस क्रिया को भी वह सहज तथा सरस रूप से करती है। वही स्त्री माता होने के 1. More Conversations of Gandhiji
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