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समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि
का संकल्प सिद्ध हुआ। उन्होंने उस मिली हुई अनेकान्त - दृष्टि की चाबी से वैयक्तिक और सामाष्टिक जीवन की व्यावहारिक और पारमार्थिक समस्याओं के ताले खोल दिये और समाधान प्राप्त किया । तब उन्होंने जीवनोपयोगी विचार और आचार का निर्माण करते समय उस अनेकान्त - दृष्टि को निम्नलिखित मुख्य शर्तों पर प्रकाशित किया और उसके अनुसरण का अपने जीवन द्वारा उन्हीं शर्तों पर उपदेश दिया । वे शर्तें इस प्रकार हैं :
१ - राग और द्वेषजन्य संस्कारों के वशीभूत न होना अर्थात् तेजस्वी मध्यस्थ भाव
रखना ।
२ जब तक मध्यस्थभाव का पूर्ण विकास न हो तब तक उस लक्ष्य की ओर ध्यान रखकर केवल सत्य की जिज्ञासा रखना ।
३ - कैसे भी विरोधी भासमान पक्ष से न घबराना और अपने पक्ष की तरह उस पक्ष पर भी आदरपूर्वक विचार करना तथा अपने पक्ष पर भी विरोधी पक्ष की तरह तीव्र समालोचक दृष्टि रखना ।
४- अपने तथा दूसरों के अनुभवों में से जो-जो ठीक अंश जचे, चाहे वे विरोधी ही प्रतीत क्यों न हों, उन सबका विवेक- प्रज्ञा से समन्वय करने की उदारता का अभ्यास करना और अनुभव बढ़ने पर पूर्व के समन्वय में जहाँ गलती मालूम हो वहाँ मिथ्याभिमान छोड़कर सुधार करना और इसी क्रम से आगे बढ़ना ।
५. अनेकान्तवाद : समन्वय शान्ति एवं समभाव का सूचक : अनेकान्तवाद भारतीय दर्शनों की एक संयोजक कड़ी और जैन दर्शन का हृदय है । इसके बीज आज से सहस्रों वर्ष पूर्व संभावित जैन आगमों में उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य, स्यादस्ति, स्यान्नास्ति, द्रव्य, गुण, पर्याय, सप्तनय आदि विविध रूपों में बिखरे पड़े हैं । 'सिद्धसेन, समन्तभद्र आदि जैन दार्शनिकों ने सप्तभंगी आदि के रूप में तार्किक पद्धति से अनेकान्तवाद को एक व्यवस्थित रूप दिया । तदनन्तर अनेक आचार्यों ने इस पर अगाध वाङमय रचा जो आज भी उसके गौरव का परिचय देता है । विगत १५०० वर्षों में स्यादवाद दार्शनिक जगत का एक सजीव पहलू रहा और आज भी है
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संसार के जितने भी विद्वान इस तर्क पद्धति के परिचय में आते हैं, वे सभी इस पर मुग्ध हो जाते हैं। डॉ. हर्मन जेकोबी, डॉ. स्टीनकोनो, डॉ. टेसीटोरी, डॉ. पारोल्ड, जार्ज बर्नार्ड शा, जैसे चोटी के पाश्चात्य विद्वानों ने इस सिद्धान्त की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा
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