________________
९६
समत्वयोग- एक समनवयदृष्टि
यही उचित है कि किसी उन्नतिशील, गुणवान पुरुष के प्रति ईर्ष्या-द्वेष न रखते हुए सद्गुणानुरागी बनकर स्वयं अपने सद्गुणों का विकास करे ।
प्रशंसा और प्रोत्साहन के द्वारा मानवहृदय जितना आकर्षित और आन्दोलित होता है, उतना और किसी तरह से नहीं । प्रशंसा और प्रोत्साहन का जादू सब पर असर डालता है । वानर जातीय वीर जब सीता को ढूँढ़ने निकले तो समुद्रतट पर जाकर सभी हिम्मत हार बैठे । तब जाम्बवन्तजी ने हनुमानजी को प्रोत्साहित किया, उनके गुणों की प्रशंसा की एवं स्मृति दिलाई। फलत: कुछ क्षण पहले हताश होकर असमर्थों की पंक्ति में बैठे हुए हनुमानजी उठ खड़े हुए और समुद्र पार करने का असम्भव-सा कार्य कर बैठे। अनियंत्रित शक्ति के धनी शिवाजी को प्रोत्साहित कर समर्थ गुरु रामदास ने देश एवं धर्म की सुरक्षा में उनकी शक्ति लगा दी । इतिहास में चमकने वाले ऐसे अगणित उज्ज्वल रत्नों की उन्नति का श्रेय ऐसे लोगों को है, जिन्होंने उनमें सुषुप्त गुणों को ढूँढ - परखकर उन्हें बढ़ावा दिया और साधारण मानव से महान् पुरुष बनाया । भ. महावीर ने चाण्डाल, पापी, विषधर सर्प तथा पतित कहलाने वाले अनेक लोगों को उनमें निहित गुणों को जगाने के लिए प्रोत्साहन देकर सज्जन एवं साधुपुरुष बना दिया । पैर की जूती मानी जाने वाली नारी जाति को आत्मोत्थान के पथ पर खड़ा कर दिया । नरेन्द्र जैसे उद्धत युवक को परखकर श्रीरामकृष्ण परमहंस ने उसे प्रसिद्ध संत विवेकानन्द बना दिया। श्रीराम के प्रोत्साहन से वानर जातीय के सामान्य व्यक्ति लंकाविजय में समर्थ हुए। कर्मयोगी श्रीकृष्ण के प्रोत्साहन से मोहाविष्ट वीर अर्जुन अनासक्तिपूर्वक अपने कर्तव्य पालन में शक्ति लगा सके, साधारण ग्वाल बालों ने गिरि गोवर्धन को उठाने में सहयोग दिया । हरिजनों में निहित सद्गुणों एवं विशेषताओं का उन्हें भान कराकर समदर्शी महात्मा गाँधी ने उन्हें प्रोत्साहन देकर उच्चस्तरीय मानव बना दिया ।
पुराण में एक कथा है - विश्वामित्र महर्षि वसिष्ठ के पुत्रों का बध करने के बाद छिपकर यह सुनने लगे कि देखें, वसिष्ठ क्या कहते हैं ? वसिष्ठ अपनी धर्मपत्नी के शोक को शान्त करते हुए कह रहे थे - "विश्वामित्र बड़े तपस्वी हैं। यह दुष्कर्म तो वे किसी आवेश में कर बैठे हैं। हमें उनके प्रति बदले की भावना नहीं रखनी चाहिए । उनकी श्रेष्ठता कभी न कभी निखरेगी। उनसे लोक-कल्याण होगा । राज्य त्याग कर तपस्यालीन होने वाले विश्वामित्र स्वभाव से दुष्ट नहीं हो सकते। यह अपराध तो उनसे भूल से ही हो गया ।" कुटिया में छिपे विश्वामित्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org