________________
समत्वयोग और कार्ल मार्क्स
५१
सम्पत्ति की वर्ग-विशेष के अनुचित एकाधिकार से मुक्ति है। साम्यवाद किसी व्यक्ति को समाज की पैदावार का उपयोग करने से नहीं रोकता । यह रोकता है उसे उसके स्वामित्व द्वारा दूसरों के श्रम का शोषण करने से । इस व्यवस्था में जो लोग श्रम करते हैं उन्हें कुछ नहीं मिलता और जो श्रम नहीं करते हैं उन्हें ही सब कुछ मिलता है ।
मार्क्स की साम्यवादी समाजरचना में व्यक्ति अपने व्यक्तित्व से शून्य एक संयंत्र मात्र नहीं है बल्कि जैसा कि उसने ऊपर स्पष्ट कहा है, व्यक्ति का विकास ही इसके विकास की अनिवार्य शर्त है । यह एक दुःखद सत्य है कि मार्क्स के उत्तराधिकारियों ने इस मूलभूत सत्य की अवहेलना कर दी जिससे साम्यवाद का प्रचलित रूप व्यक्तिगत जीवनविकास की स्वतन्त्रता का घातक बन गया । मार्क्स से शांतिपूर्वक क्रांति हो सकने की सम्भावना पर प्रश्न पूछा गया । उसने उत्तर दिया हमारी इच्छा है कि ऐसा हो और साम्यवादी शान्तिपूर्वक क्रांति के कतई विरोधी नहीं होंगे ।"
....
444
अगर शान्ति में, अहिंसा में क्रांतिकारी क्षमता हो तो मार्क्स का उससे विरोध नहीं है । हिंसा की अनिवार्यता आगामी साम्यवादी नेताओं और विचारकों के चिन्तन से निष्पन्न है । मार्क्स हिंसा को अनिवार्य नहीं मानता । उन परिस्थितियों में उसे अपरिहार्य मानता है जिनमें अहिंसक क्रांति के सारे मार्ग अवरुद्ध हों । अतः मार्क्स के लिए हिंसा परिस्थितियों के सापेक्ष अपरिहार्य निष्पत्ति है, उसके अनिवार्य विकल्प होने में उसका विश्वास नहीं, जो कि उसके परवर्तियों का है। मार्क्स प्रजातंत्र के वर्तमान रूप को जिसमें धनसत्ता और राजसत्ता का संयुक्त षडयंत्र लोकसत्ता का घातक बन गया है, अलोचित करता है, लेकिन मूलतः वह प्रजातंत्र का विरोधी नहीं है जैसा कि उसके परवर्ती हैं । वह प्रजातंत्र के माध्यम से भी सामाजिक शोषण एवं अन्याय का उन्मूलन करने के लिए सुझाव देता है ।
Jain Education International
कुल मिलाकर मार्क्स की साम्य - प्रकल्पना का समाज है धनसत्ता और राजसत्ता से मुक्त एवं प्रेम, सेवा, स्वातन्त्र्य और समत्व का साकार रूप है । इस स्वप्न को साकार करने के लिए विश्व के आधे देशों में क्रांतियाँ हुई लेकिन उनके परिणाम आशा के एकदम विपरीत हुए ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org