Book Title: Pundrik Charitram
Author(s): Kamalprabhsuri, Bechardas Doshi,
Publisher: Mohanlal Girdharlal Shah Bhavnagar
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चरित्रम्
पुण्डरीक- इत्थं कलाचार्यवचः शुचि श्रुत्वा नृपाङ्गजः। नत्वा जगाद सुगुरो ! करिव्येऽहमिदं ध्रुवम् ॥८९॥
6 अथ- अनुकुलो दुकूलानि भूपस्तम्मै कलाविदे। ददो तदौचित्ययुतो गुणिगौरवहेतुवित् ॥९॥ ॥२१२॥
एवं श्रीभीमसेनेन भूभुजा सत्कृतः कृती । ज्ञानानन्दः कलाचार्यो निजं धाम जग.म सः ॥९॥ अथाऽन्यदा कृतस्नानः संवीतशुचिचीवरः। गृहदेवगृहे देव-पूजायै नृपसूर्ययौ ॥ ९२॥ ( दिव्या पत्रिका- ) उत्तारयन् स निर्माल्यं कुमारो निजपाणिना। जिनेन्द्र मूर्तिहस्तस्थामपश्यद् दिव्धपत्रिकाम् ।। स्वर्णवर्णावलीरम्यां पत्रिका नृपनन्दनः । नीत्वेत्थं वाचयामास विस्मयावासमानसः ॥९४। तथाहि- योऽत्र दुःख-सुखपूरगतोऽपि स्वीयसत्वतरणी न विमुञ्चेत् ।
गर्व-दैन्यजलधिद्वयमध्ये नो पतेत् स गतपातकभारः ॥९५५ अन्यच्च- पूर्वकर्मयशतः सुखिनः स्युर्दुःखिनश्च भुवने भविनोऽमी।
पीधीभिरिति तत्वमवेत्य सत्वमेव सततं करणीयम ॥९॥ इत्थं दिव्यंमिदं पत्रं वाचं वाचं स भूपभूः। स स्वान्तं स्नपयामास प्रमोदक्षीरनीरधौ ॥९७॥
ततः श्रीवीतरागस्य पूजां कृत्वा नृपाङ्गजः | काव्यद्वयं स्मरन्नेष चक्र तद्दिननिर्गमम् ॥९८॥ 8 विधाय सायमप्येष कुमारो जिनपूजनम् । याते यामेऽङ्गसौख्येन शय्यायां स्वापमाप सः॥२९॥
( भुवनभानुर्विरूपां नारीमैक्षत-) ततो यावजजागार कुमार: म्फारसत्ववान् । तावत् पुरो विरूपाक्रीमेको नारीमक्षत ॥१०॥ १ परिहितम्। २ चित्तम् ।
॥२१२॥
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