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एक आशावादी व्यक्ति चिपका रहता है अपनी आशाओं से और निराशावादी चिपका रहता है अपने दुखों से, अपनी निराशा से। वह निराशा ही संगी-साथी बन जाती है। योग उसके लिए ही है जो न तो आशावादी है और न ही निराशावादी। यह उसके लिए है जो पूरी तरह यूं निराश हो चुका है कि निराशा को महसूस करना तक व्यर्थ हो गया है।
वह विपरीतता, नकारात्मकता केवल तभी अनुभव हो सकती है अगर तुम गहरे में कहीं सकारात्मक से चिपके ही चले जाते हो। यदि तुम आशा से चिपकते हो, तुम निराशा का अनुभव कर सकते हो। अगर तुम अपेक्षा से चिपकते हो तो तुम विफलता अनुभव कर सकते हो। लेकिन यदि तुम सिर्फ इतना भर पूरी तरह समझ जाओ कि अपेक्षा की कोई संभावना है ही नहीं तो कुंठा कहां हो सकती है? तो अस्तित्व का यह स्वभाव है कि अपेक्षा के लिए, आशा के लिए कोई संभावना नहीं है। जब ऐसा होना निश्रितता बन जाता है तब तुम निराशा कैसे अनुभव कर सकते हो! और तब आशा और निराशा दोनों विलीन हो जाती हैं।
पतंजलि कहते हैं, 'अब योग का अनुशासन।' वह 'अब' केवल तभी घटित होगा जब तुम न तो निराशावादी रहे और न ही आशावादी। निराशावादी और आशावादी दृष्टिकोण, ये दोनों ही बीमार दृष्टिकोण है। लेकिन ऐसे शिक्षक मौजूद हैं जो आशावादिता की भाषा में बातें किये चले जाते हैंविशेषकर अमरीकी ईसाई प्रचारक। वे आशा, आशावादिता, भविष्य और स्वर्ग की भाषा में ही बोले चले जाते हैं। पतंजलि की दृष्टि में यह केवल बचकानापन है क्योंकि न एक और नयी बीमारी ला रहे हो। तुम नयी बीमारी को पुरानी बीमारी की जगह रख रहे हो। तुम दुखी हो और किसी भी तरह सुखी होने की सोच रहे हो। इसलिए जो कोई भी तुम्हें आश्वासन देता है कि यह रास्ता तुम्हें खुशी की ओर ले जायेगा, तुम उसी के पीछे चल पड़ोगे। वह तुम्हें आशा दे रहा है। लेकिन तुम अतीत की आशाओं के कारण ही इतने ज्यादा दुखी हो रहे हो; वह फिर किसी आगामी नरक का निर्माण किये दे रहा है।
योग तुमसे ज्यादा वयस्क, ज्यादा परिपक्व होने की अपेक्षा रखता है। योग कहता है कि कोई संभावना नहीं है अपेक्षा की; भविष्य में कोई संभावना नहीं है किसी परितोष की। भविष्य में कोई स्वर्ग तुम्हारी प्रतीक्षा नहीं कर रहा है और ईश्वर क्रिसमस का उपहार लिये तुम्हारी प्रतीक्षा नहीं कर रहा है। कोई नहीं है जो तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है। इसलिए भविष्य के पीछे ललकते मत फिरो।
और यदि तुम सचेत हो गये हो कि कुछ ऐसा नहीं है जो कहीं भविष्य में घटित होने वाला है, तो तुम अभी और यहीं जागरूक हो जाओगे क्योंकि कहीं कुछ है नहीं आगे बढ़ने के लिए। तब कंपित होने का कोई कारण नहीं है। तब एक स्थिरता तुममें घटित होती है। अचानक तुम गहरे विश्राम में होते हो। तुम कहीं जा नहीं सकते, तुम घर में हो। गति समाप्त हो जाती है; बेचैनी गायब हो जाती है। अब समय है योग में उतरने का।