Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 22
________________ भाषा-मर्थ। सांव्यवहारिक प्रत्यक्षा के कारण और उसका लक्षण । इन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तं देशतः सांव्यवहारिकम्॥५॥ भाषार्थ-इन्द्रियों की और मन की सहायता से होने वाले, एक देश विशद (निर्मल ) ज्ञान को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं। भावार्थ-यह प्रत्यक्ष मतिज्ञान का ही भेद है जिसका कि उमास्वामी महाराज ने "मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ता ऽभिनि बोध इत्यनर्थान्तरम्” इस सूत्र में पड़े हुए मति शब्द से उल्लेख किया है, इसके द्वारा प्रवृत्ति और निवृत्ति रूप व्यवहार चलता है; इस लिए इसको सांव्यवहारिक विशेषण दिया है । और थोड़ी निर्मलता लिए होता है, इस लिए इसको प्रत्यक्ष कहा है वस्तुतः यह परोक्ष ही है । क्योंकि, “प्राद्ये परोक्षम्'' यह सूत्र कहता है कि मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञान परोक्ष प्रमाण हैं। जो लोग इन्द्रिय तथा अनिन्द्रिय की नाई अर्थ और आलोक (प्रकाश ) को भी ज्ञान का कारण मानते हैं, प्राचार्य उनका निषेध करते हैं:नार्थालोको कारण परिच्छेद्यत्वात्तमोवत् ॥६॥ भाषार्थ-पदार्थ और प्रकाश, ज्ञान के कारण नहीं है। क्योंकि वे ज्ञान के विषय हैं। जो २ ज्ञान का विषय होता है वह २ ज्ञान का कारण नहीं होता है । जैसे अन्धकार । यह ज्ञान का विषय तो होता है, क्योंकि सर्व ही कहते हैं कि यहां अन्धकार

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