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परीक्षामुख
उसका स्मरण हो जायगा, और जिसने पहले कभी व्याप्ति का अनुभव किया ही नहीं, उसके लिए सौ बार भी दृष्टान्त कहा जाय ; परन्तु कभी व्याप्ति का स्मारक नहीं होगा ।
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ऊपर के कथन से यह तो सिद्ध हो गया, कि उदाहरण साध्य की सिद्धि में उपयोगी नहीं; परन्तु इतना ज़रूर है कि यदि केवल दृष्टान्त का प्रयोग किया जायगा ; तो उल्टा साध्य की सिद्धि में सन्देह करा देगा । सोही आचार्य कहते हैं:
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तत्परमभिधीयमानं साध्यधर्मिणि साध्यधर्मिणि साध्य साधने सन्देहयति ॥ ४२ ॥
भाषार्थ – यदि केवल ( उपनय और निगमन के विना ) उदाहरण का प्रयोग किया जायगा; तो साध्य धर्म वाले धर्मी ( पक्ष ) में साध्य के सिद्ध करने में सन्देह करा देगा ।
भावार्थ -- उदाहरण ( रसोईघर) के बोलने से पर्वत ( पक्ष ) में क्या आया ; जिससे कि यह निश्चय हो जाय; कि यहां अग्नि है । किन्तु सन्देह अवश्य होगा, कि जैसी रसोईघर में अग्नि थी वैसी अग्नि यहां कहां से आई ।
इसी सन्देह को पुष्ट करते हैं:कुतोऽन्यथोपनयनिगमने ॥ ४३ ॥
भाषार्थ -- यदि उदाहरण के प्रयोग से सन्देह नहीं होता है; तो उपनय और निगमन का प्रयोग क्यों किया जाता है ।