Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 72
________________ भाषा - अर्थ | इसी में हेतु देते हैं :अनुवृत्तव्यावृत्तप्रत्ययगोचरत्वात्पूर्वोत्तराकार परिहारावाप्तिस्थितिलक्षणपरिणामनार्थक्रियोपप तेश्च ॥ २ ॥ भाषार्थ सामान्य विशेषस्वरूप पदार्थ प्रमाणका विषय होता है अथवा यों कहिये, कि द्रव्यपर्यायस्वरूप पदार्थ प्रमाणका विषय होता है; क्योंकि वह अनुवृत्तप्रत्यय तथा व्यावृत्तप्रत्ययका विषय होता है । दूसरा हेतु यह है कि अर्थके पूर्वग्राकारका विनाश और उत्तरआकारका प्रादुर्भाव होता है जिनसे अर्थका स्थितिरूप परिणाम रहता है जिसके द्वारा कि उसमें अर्थ क्रिया होती है अर्थात् उत्पाद और व्यय से रहनेवाले स्थितिरूप परिणामद्वारा ही अर्थ में अर्थ - क्रिया होता है । भावार्थ -- अनुवृत्त और व्यावृत्त इन दोनों प्रत्ययों का विषय होता है इस कारण, तथा उत्पाद - विनाशको प्राप्त होता हुआ भी अपनी स्थितिको कायम रखकर, अपने कार्य (अर्थ-क्रिया) को करताहै इसकारण, उभय स्वरूप अर्थात् सामान्य - विशेषस्वरूप पदार्थही प्रमाणका विषय होता है । भावार्थं । अनुवृत्तप्रत्ययका विषय सामान्य होता है श्रौर व्यावृत्तप्रत्ययका विषय विशेष होता है तथा इसीप्रकार, द्रव्य ( सामान्य ) और पर्याय (विशेष) दोनोंरूप पदार्थ मेंही अर्थ-क्रिया बनसकती है । केवल द्रव्य अथवा पर्यायमें नहीं । इससे सिद्ध होता है कि सामान्य-विशेषस्वरूप पदार्थही प्रमाणका विषय होता हैं । अर्थ-क्रिया-पदार्थोंके कार्यको कहते हैं जैसे घटकी अर्थक्रिया जलश्राहरण करना है। गौ गौ गौ इसप्रकारके प्रत्ययको अनुवृत्त प्रत्यय और यह श्याम है यह चितकबरी है. इसप्रकार के प्रत्ययको

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