Book Title: Parikshamukh
Author(s): Ghanshyamdas Jain
Publisher: Ghanshyamdas Jain

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Page 84
________________ भाषार्थ-यह स्वरूपसे ही ठीक नहीं है कि शब्द चक्षुसे माना जाता है । किन्तु शब्द कर्णसे जाना जाता है। संदिग्धासिद्धका उदाहरणः- - - अविद्यमाननिश्चयो मुग्धबुद्धिं प्रत्यग्निरत्र धूमात् ॥ २५ ॥ भाषार्थ-मुग्धबुद्धि अर्थात् किसी अजानपुरुषसे कहना कि यहां अग्नि है क्योंकि धूम है । यह धूमहेतु संदिग्धासिद्ध है। धूमहेतुके संदिग्धासिद्ध होनेमें हेतुः - तस्य बाष्पादिभावेन भूतसंघाते सन्देहात् ॥२६॥ भाषार्थ-मुग्धबुद्धिके प्रति इसलिए “ धूम ' हेतु संदिग्धासिद्ध है कि उसे भूतसंघातमें वाष्पादि देखनेसे सन्देह होजाता है कि यहां भी अग्नि है-अथवा होगी। और भी असिद्धहेत्वाभासका भेद दिखाते हैं:साख्यं प्रति परिणामी शब्दः कृनकत्वात् ॥२७॥ भाषार्थ—सांख्यके प्रति कहना कि शब्द परिणामी होता है क्योंकि वह किया जाता है । यह हेतु उसके प्रति प्रसिद्ध है। क्योंकिःतेनाज्ञातत्वात् ॥ २८ ॥ १ भृतसंघातसे चूल्हेसे उतारी हुई वटलोई देना चाहिए, क्योंकि उसमें पृथ्वी, अप, तेज, वायु, चारोंही का समुदाय रहता है और भाप भी निकलती रहती है।

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